अध्याय समीक्षा:-
हमारे संसाधनों जैसे: वन, वन्य जीवन, कोयला एवं पेट्रोलियम का उपयोग संपोषित रूप से करने की आवश्यकता है।
‘कम उपयोग, पुनः उपयोग एवं पुनः चक्रण’ की नीति अपना कर हम पर्यावरण पर पड़ने वाले दबाव को कम कर सकते हैं।
वन-संपदा का प्रबंधन सभी पक्षों के हितों को ध्यान में रखकर करना चाहिए।
जल संसाधनों के सगंह्रण हेतु बाँध बनानें में सामाजिक-आथिर्क , एवं पयार्वरणीय समस्याए आती हैं| बडे बाँधां का विकल्प उपलब्ध है। यह स्थान/क्षेत्र विशिष्ट हैं तथा इनका विकास किया जा सकता है जिससे स्थानीय लोगों को उनवेफ क्षेत्र के संसाधनों का नियंत्राण सौंपा जा सके।
जीवाश्म ईंधन, जैसे कि कोयला एवं पेट्रोलियम, अंततः समाप्त हो जाएँगे। इनकी मात्रा सीमित है और इनके दहन से पर्यावरण प्रदूषित होता है, अतः हमें इन संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग की आवश्यकता है।
चिपको आन्दोलन स्थानीय निवासियों को वनों से अलग करने की नीति का परिणाम था | गाँव के समीप वृक्ष काटने का अधिकार ठेकेदारों को दे दिया गया था , इसीलिए चिपको आन्दोलन हुआ |
चिपको आन्दोलन स्थानीय निवासियों को वनों से अलग करने की नीति का परिणाम था | गाँव के समीप वृक्ष काटने का अधिकार ठेकेदारों को दे दिया गया था , इसीलिए चिपको आन्दोलन हुआ |
जैव विविधता के नष्ट होने पर पारिस्थितिक स्थायित्व नष्ट हो जाता हैं |