अध्याय समीक्षा
- मुस्लिम समाजों की जड़ें एक अधिक एकीकृत अतीत में समाहित हैं, जिसका प्रारंभ लगभग 1400 वर्ष पहले अरब प्रायद्वीप में हुआ था।
- अरबी कबीले वंशों से बने हुए होते थे अथवा बड़े परिवारों के समूह होते थे। ग़रै -रिश्तेदार वंशों का, गढ़े हुए वंशक्रम के आधार पर इस आशा के साथ आपस में विलय होता था कि नया कबीला शक्तिशाली होगा। ग़रै -अरब व्यक्ति (मवाली) कबीलों के प्रमुखों के संरक्षण से सदस्य बन जाते
थे। लेकिन इस्लाम में धर्मांतरण के बाद भी मवालियों के साथ अरब मुसलमानों द्वारा समानता का
व्यवहार नहीं किया जाता था और उन्हें अलग मस्जिदों में इबादत करनी पड़ती थी। - सन् 612-632 में पैगम्बर मुहम्मद ने एक ईश्वर, अल्लाह की पूजा करने का और आस्तिकों
(उम्मा) के एक ही समाज की सदस्यता का प्रचार किया। यह इस्लाम का मूल था। - पैगम्बर मुहम्मद सौदागर थे और भाषा तथा संस्कृति की दृष्टि से अरबी थे।
- छठी शताब्दी की अरब संस्कृति अधिकांश अरब प्रायद्वीप और दक्षिणी सीरिया और मेसोपोटामिया के क्षेत्रों तक सीमित थी।
- इस्लामी क्षेत्रों के सन 600 से 1200 तक के इतिहास के बारे में हमें जानकारी इतिवृतों अथवा तवारीख, अर्ध-ऐतिहासिक कृतियों पर आधारित है, जैसे जीवन-चरित (सिरा) पैगम्बर के कथनों और कृत्यों के अभिलेख (हदीथ) और कुरान के बारे में टीकाएँ (तफसीर) इनका निर्माण प्रत्यक्षदर्शी वृतांतों (अख़बार) आदि से किया गया है |
- काबा को एक ऐसी पवित्र जगह (हरम) माना जाता था, जहाँ हिंसा थी और सभी दर्शनार्थियों को सुरक्षा प्रदान की जाती थी। तीर्थ-यात्रा और व्यापार ने खानाबदोश और बसे हुए कबीलों को एक दूसरे के साथ बातचीत करने और अपने विश्वासों और रीति-रिवाजों को आपस में बाँटने का मौका दिया।
- पैगम्बर मुहम्मद का अपना कबीला, व़ कुरैश, मक्का में रहता था आरै उसका वहाँ के मुख्य धर्म स्थल पर नियंत्रण था। इस स्थल का ढाँचा घनाकार था और उसे ‘काबा’ कहा जाता था, जिसमें बुत रखे हुए थे।
- सन् 612 के आस-पास पैगम्बर मुहम्मद ने अपने आपको खुदा का संदेशवाहक (रसूल) घोषित
किया, जिन्हें यह प्रचार करने का आदेश दिया गया था कि केवल अल्लाह की ही इबादत यानी
आराधना की जानी चाहिए। - पैगम्बर मुहम्मद के संदेश ने मक्का के उन लोगों को विशेष रूप से प्रभावित किया, जो अपने आपको व्यापार और धर्म के लाभों से वंचित महसूस करते थे और एक नयी सामुदायिक पहचान की बाट देखते थे। जो इस धर्म-सिद्धांत को स्वीकार कर लेते थे, उन्हें मुसलमान (मुस्लिम) कहा जाता था, उन्हें कयामत के दिन मुक्ति और धरती पर रहते हुए समाज के संसाधनों में हिस्सा देने का आश्वासन दिया जाता था।
- मुसलमानों को शीघ्र ही मक्का के समृद्ध लोगों के भारी विरोध् का सामना करना पड़ा, जिन्हें देवी-देवताओं का ठुकराया जाना बुरा लगा था और जिन्होंने नए धर्म को मक्का की प्रतिष्ठा और समृद्धि के लिए खतरा समझा था।
- सन् 622 में, पैगम्बर मुहम्मद को अपने अनुयायियों के साथ मदीना कुचकर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। पैगम्बर मुहम्मद की इस यात्रा (हिजरा) से इस्लाम के इतिहास में एक नया मोड़ आया। जिस वर्ष उनका आगमन मदीना में हुआ उस वर्ष से मुस्लिम कैलेण्डर यानी हिजरी सन् की शुरुआत हुई।
- किसी धर्म का जीवित रहना उस पर विश्वास करने वाले लोगों के जिन्दा रहने पर निर्भर करता है। इन लोगों के समुदाय को आंतरिक रूप से मज़बूत बनाना और उन्हें बाहरी खतरों से
बचाना जरूरी होता है।