मुख्य बिन्दू :-
- अधिकार उन बातों का प्रतिक है, जिन्हें समाज के सभी लोगों को सम्मान और गरिमा का जीवन बसर करने के लिए महत्त्वपूर्ण और आवश्यक समझते हैं।
- 10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र की सामान्य सभा ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को स्वीकारा और लागू किया।
- 17वीं और 18 वीं शताब्दी में राजनीतिक सिद्धान्तकर तर्क देते थे कि हमारे लिए अधिकार प्रकृति या ईश्वर प्रदत्त हैं। हमें जन्म से वे अधिकार प्राप्त हैं। अत: कोई व्यक्ति या शासक उन्हें हमसे छीन नहीं सकता।
- मनुष्य के लिए तीन प्राकृतिक अधिकार चिन्हित किये गए थे- (i) जीवन का अधिकार, (ii) स्वतंत्रता का अधिकार और (iii) संपत्ति का अधिकार।
- नागरिक स्वतंत्रता और राजनीतिक अधिकार मिलकर किसी सरकार की लोकतांत्रिक प्रणाली की बुनियाद का निर्माण करते हैं।
- राजनीतिक अधिकार नागरिकों को कानून के समक्ष बराबरी तथा राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का हक देते हैं।
- अधिकारों का उद्देश्य लोगों के कल्याण की हिफाजत करना होता है।
- जर्मन दार्शनिक इमैनुएल कांट के अनुसार लोगों के साथ गरिमामय बर्ताव करने का अर्थ था उनके साथ नैतिकता से पेश आना।
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कांट के विचार ने अधिकार की एक नैतिक अवधारणा प्रस्तुत की। पहला, हमें दूसरों के साथ वैसा ही आचरण करना चाहिए, जैसा हम अपने लिए दूसरों से अपेक्षा करते हैं।दूसरे, हमें यह निश्चित करना चाहिए कि हम दूसरों को अपनी स्वार्थ सिद्धि का साधन नहीं बनायेंगे।
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भारतीय संविधान में सात मौलिक अधिकार थे, परन्तु सन1979 में 44 वें संशोधन के द्वारा सम्पति के अधिकार को हटा दिया गया है | अब मुख्यत : छ : मौलिक अधिकार रह गए है |