अध्याय-समीक्षा
- शाहजहाँ बेगम की अताम्कथा ताज -उल -इक़बाल तारीख भोपाल , भोपाल का इतिहास है 1876 में एच डी बरसतो ने किया था |
- स्तूप का सब्धिक अर्थ है - किसी वस्तु का ढेर | स्तुप का विकास ही संभवतः मिटटी के चबूतरे से हुआ , जिसका निरमान मर्तक कि चिता के उपर अथवा मृतक कि चुनी हुई अस्थियो के रखने के लिए किया जाता था | गौतम बुद्ध के जीवन कि परमुख घटनाओ , जन्म ,सम्भोदी धर्मचक्र परवर्तन तथा निर्वान से सम्बंधित सथानो पैर भी स्तुपो नका निर्माण हुआ |
- साँची का स्तूप - साँची भोपाल में एक जगह का नाम है और यह मध्य्पर्देस में स्थित है | साँची में एक पुराना स्तूप है जो , जो अपनी सुन्दरता के लिए परसिध है यह स्तूप महँ सम्राटअशोक द्वारा बनवाया गया था |इस स्तूप का निर्माण कार्य तीसरी शताब्दी इसवी पू. से शुरू हुआ
- साँची के स्तूप का संरक्षण - भोपाल कि बेगमो का स्तूप के संरक्षण में बेहद योगदान रहा है , फ़्रांस के लोग साँची के पूर्वी तोरण द्वार को अपने साथ ले जा कर फ़्रांस के संघ्रयालय में प्रदर्शित करने के लिए तोरण द्वार को फ़्रांस ले जाने कि मांग शाहजहाँ बेगम से की ऐसे ही कोशिश अन्रेजो ने भी कि थी | लेकिन बेगम बेगम नही चाहती थी कि साँची के स्तूप का यह तोरण द्वार कही और जाये , तो बेगम ने अंग्रेजो को और फ्रंसिस्यो को बेहद सावधानीपूर्वक तरीके से बने गयी एक प्लास्टर ऑफ़ पेरिस प्रकर्ति थमा दी ओर वे संतुस्ट हो गये इस तरह से साँची का स्तूप बच गया |
- इसवी पूपर्थम सह्सत्र्स्ताब्दी (एक महत्वपूर्ण काल ) - यह काल विश्व के इतिहास में एक काफी महत्वपूर्ण मन जाता था | क्योकी इस काल में अनेक चिंतको को उदय हुआ |जेसे -बुद्ध , महावीर , प्लेटो , अरस्तु , सुकरात, खुन्गास्त्सी | इन सब विद्वानों ने जीवन के रहस्य को समझने कि कोशिश कि |
- जैन शब्द (जिन ) शब्द से निकला है जिसका अर्थ है विजेता |जैन धर्म ग्रंथो का संकलन अंतिम रूप से 500इसवी के आसपास गुजरात के वलाल्भी में हुआ था |जैन धर्म भारत के प्राचीन धर्मो में से एक है | जैन धर्म कि शिक्षआये 6वीसदी इसवी पूर्व से पहले ही भारत में परचलन में थी
- जैन परम्परा के अनुसार महावीर से पहले 23 शिक्षक हो चुके थे | जिन्हें तीर्थकर कहा जाता है| यानि के वे महापुरुष जो कि पुरुष अऔर महिलाओ को जीवन कि नदी के पार पहुचाते है |
- महावीर जैन धर्म के 24 वे तीर्थकर थे जैन धर्म के पहले तीर्थकर ऋषभदेव थे जैन धर्म के 23 वे तीर्थकर पार्शवनाथ जी थे
- तीर्थकर -- तीर्थकर का शाब्दिक अर्थ संसार से पार होने के लिए घाट या तीर्थ का निर्माण करने वाला , प्रथम तीर्थकर ऋषभ देव , दुसरे तीर्थकर -अजीतनाथ 19वे तीर्थकर मल्लिनाथ , तीसरे तीर्थकर पाशर्व , 24वे तीर्थकर व अंतिम तीर्थकर महावीर स्वामी थे
- जैन धर्म कि शाखाये - श्वेताम्बर - इस शाखा के लोग श्वेत वस्त्र धारण करते है | दिगम्बर - इस शाखा के लोग वस्त्र नही पहनते एव नग्न रहते है
- बोद्ध धर्म - बोद्ध धर्म एक प्राचीन और महँ धर्म है जो कि भारत से निकला है तथा महात्मा बुद्ध ने इसकी स्थापना कि है , इसकी स्थापना लगभग 6 इसवी पूर्व में हुई | ईसाई और ईस्लाम धर्म के बाद यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म था |
- इस धर्म को मानने वाले ज्यादातर लोग चीन , जापान , कोरिया ,थाईलैंड, कम्बोडिया,श्रीलंका , नेपाल , भूटान , और भारत है|
- महात्मा बुद्ध का जन्म लुम्बिनी ( नेपाल ) में हुआ था | इन्होने अपना प्रथम उपदेस सारनाथ , काशी में दिया था , इनके प्रथम शिष्य उपाली , ओर आनंद थे
- निर्वाण - निर्वाण का शाब्दिक अर्थ होता है दीपक का बुझ जाना या ठंडा पड़ जाना आथार्त वह अवस्था जब चित कि मलिनता समाप्त हो जाती तथा ततरश्नाओ एव दुखो का अन्त हो जाता है
- ब्बुध कि शिक्षाओं को त्रिपिटक में संकलित किया गया है तथा इन्हें तीन टोकरिय बी कहा जाता है - सुत्तपीटक , विनयपिटक , अभिधम्म पीटक
- हीनयान तथा महायान -- हीनयान - मूर्ति पूजा को नही मानते थे | परम्परागत बोद्ध धर्म को मानते थे |
- महायान - यह मूर्ति पूजा को मानते थे |