अध्याय-समीक्षा
- 8 वी - 18 वी शताब्दी तक भक्ति आन्दोलन , इस्लाम और सूफी आन्दोलन ने मध्यकालीन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | अलवार ओर नयनार दक्षिण भारत में भक्ति आन्दोलन के संस्थापक माने जाते थे | अलवार भगवान् विष्णु के भक्त थे , जबकि नयनार शेव धर्म के अनुयाई मने जाते थे | अलवार और नयनार दोनों ने समाज में प्रचलित सामाजिक और धार्मिक दुर्भावनाओ कि कड़ी आलोचना कि | अलवार कि दो महिला संत - अंदल ओर नयनार कि अम्माईयर कि कराइकल ने समाज को एक नई दिशा देने में महवपूर्ण भूमिका निभाई | चोल , पल्लव , और चलूक्य ने अलवार और नयनार दोनों पन्थो का संरक्षण किया | बस्वन्ना ने कर्नाटक में वीरशेव या लिंगयात कि स्थापना कि और अपने पंथ के विकास में एक महवपूर्ण भूमिका निभाई |
- इस्लाम - "इस्लाम " एक एकेश्वरवादी धर्म है जो अल्लाह कि तरफ से अंतिम रसूल और नबी , मुहम्द द्वारा इंसानों तक पुह्चाई गयी अंतिम ईश्वरीय किताब (कुरआन ) कि शिक्षा पर स्थापित है | इस्लाम कि स्थापना 7 वी शताब्दी में पैगम्बर मुह्हमद ने अजाबिया में कि थी | इस्लाम के 5 स्तम्भ है - शहादा , सलात या नमाज , सोम या रोज़ा , जकात, हज |
- इस्लाम के महत्वपूर्ण सिलसिले 4 है - चिस्ती सिलसिला , सुहरावर्दी सिलसिला, कादिरी सिलसिला , नक्शबंदी सिलसिला
- सूफी तथा सूफीवाद - भारत में मध्यकालीन काल के दोरान सुफिवादी एक शक्तिशाली आंदोलनों के रूप में उभरा | सुफियो को उनके दिलो कि पवित्रता (सफा) के कारण कहा जाता था | सूफी (सूफं) पहनने कि आदत के कारण सूफी को एसा कहा जाता था | इश्वर एकता , पूर्ण आत्म-समपर्ण , दान , इबादत , मानव जाति के लिए प्रेम आदि सुफिवाद के मुख्य उपदेश है | इस्लामी दुनिया में सूफी सिलसिले उभरने लगते है | दाता गूंज बख्श , ख्वाजा मुइद्दीन चिस्ती , शेख कुतुभुधीन | बख्तियारकाकी , फरिउदीन गूंज - ए शकर , ओर शेख निजामुदीन ओलिया भारत के कुछ प्रमुख सूफी शेख है
- जियारत - जियारत का अर्थ सूफी संतो कि कब्रों कि तीर्थयात्रा करना था | इसका मुख्य उदेश्य सूफी से आध्यात्मिक अनुग्रह प्राप्त करना था | संगीत और न्रत्य जियारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है | सूफियो का मानना था कि संगीत और न्रत्य मानव ह्रदय में दिव्य परमानंद पैदा करते है | सूफीवाद के धार्मिक आयोजना को साम के नाम से जाना जाता है |
- कवाल - कवाल एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ था ' कहना '| यह कव्वालो के खुलने या बंद होने के समय गाया जाता था |
- भक्ति - मोक्ष् प्राप्ति के अंतिम उदेश्य के साथ भगवन कि भक्ति को भक्ति कहा जाता है | भक्ति शब्द को मूल 'भज ' से लिया गया था जिसका अर्थ है आराध्य | भक्त जो अवतार और मूर्ति पूजा के विरोधी थे , संत के रूप में जाने जाते है | कबीर , गुरु नानक देव जी और गुरु नानक देव जी के उत्रदिकारी प्रमुख भक्ति संत है | भारतीय समाज पर भक्ति आन्दोलन का प्रभाव महत्वपूर्ण और दूरगामी था |
- प्रारम्भिक भक्ति परम्परा - इतिहासकार ने भक्ति परम्परम्पराओ के दो व्यापक श्रेणियों अर्थार्त निर्गुण ( विशेस्ताओ के बिना ) और सगुण ( विष्णु के साथ ) में वर्गीक्रत किया है | कहती शताब्दी में , भक्ति आंदोलनों का नेत्रत्व अलवार , नयनार (शिव भक्त ) ने किया था |
- स्त्री भक्त - इस परम्परा कि विशेस्ताये थी | अंदल , कराइकाल अम्मरियर जेसी महिला भक्तो ने भक्ति संगीत रचना कि , जिसने पित्रसतात्म्क मानदंडो को चुनोतियो दी | अंडाल नामक अलवार स्त्री के भक्ति गीत गाये जाते | अंडाल खुद को भगवान विष्णु कि प्रेयसी मानकर प्रेम भावना छन्दों में व्यक्त करती थी | शिवभक्त स्त्री कराइकाल अम्मईयार ने घोर तपस्या के मार्ग को अपनाया | नयनार परम्परा में उनकी रचना को शुर्क्षित रखा गया |
- राज्य के सम्बन्ध - नयनार और अलवार संतो को क्रिश्सको द्वारा सम्मानित किया गया शाशको ने भी इनका समर्थन पाने का प्रयास किया | चोल शाशको ने देवीय समर्थन पाने का दावा किया |चोल शासको के संरक्ष्ण में , चिंदबरम तंजावुर और गंगई कोंडाचोलपुरम में बड़े और भव्य मंदिरों का निर्माण किया गया था | इस प्रकार संतो कि कविता और विचारो को मूर्त रूप दिया | शाही संरक्षण के तहत मंदिरों में शेव भजन गाये जाते थे | उन्होंने भजनों का संकलन एक ग्रन्थ के रूप में किया |
- कर्नाटक में वीरशेव परम्परा - कर्नाटक में 12वी शताब्दी में बसवन्ना नाम के एक ब्राह्मण के नेत्रत्व में एक नया आन्दोलन उभरा | उनके अनुययियो को वीरशेव ( शिव के नायक ) या लिंगयात ( लिंग के वस्त्र ) के रूप में जाना जाता था | यह शिव कि पूजा लिंग के रूप में करते है इस शेत्र में लिंगयात आज भी एक महत्वपूर्ण समुदाय बने हुए है | लिंग्यातो ने जाति , प्रदुषण , पुनर्जन्म के सिदंतो आदि के विचार को चुनोती दी और युवावस्था के बाद के विवाह और विधवाओ के पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया | वीरशेव परम्परा कि हमारी समझ कन्नड़ में वचनों ( शाब्दिक रूप से कही गई) से ली गयी है , जो आन्दोलन में शामिल हुई महिलाओ और पुरुषो द्वारा बनायीं गयी है |
- उतरी भारत में धार्मिक उफान - इसी काल में उतरी भारत में भगवान् शिव और विष्णु कि उपासना मंदिरों में कि जाती थी| मंदिर शासको कि सहायता से बनाये गए थे| उतरी भारत में इस काल में राजपूत राज्यों का उद्भव हुआ | इन राज्यों में ब्राह्मणों का वर्चस्व था | ब्राह्मण अनुष्ठान कार्य ( पूजा , यघ ) करते थे |
- इस्लामी परम्पराए - प्रथम सहस्राब्दी इसवी में अरब व्यापारी समुद्र के रस्ते से पश्चिमी भारत के बंदरगाहो तक आये | इसी इसी समय मध्य एशिया से लोग देश के उत्तर - पश्चिम प्रान्तों में आकर बस गये | सातवी शताब्दी में इस्लाम के उद्भव के बाद ये शेत्र इस्लामी विश्व कहलाया |
- शासको और शासितों के धार्मिक विश्वास - 711 इसवी में मुहम्मद बिन कासिम नाम के एक अरब सेनापति ने सिंध को जीत लिया और उसे खलीफा के शेत्र में शामिल कर लिया | 13 वी शताब्दी में तुर्क , और अफगानों ने भारत पर आक्रमण किया और दिल्ली सल्तनत कि स्थापना कि |
- जिम्मी - जिम्मी ऐसे लोग थे जो गेर मुसलमान थे जेसे - हिन्दू , इसाई ,यहूदी | गेर - मुसलमानों को जजिया नामक कर का भुगतान करना पड़ता था और मुस्लिम शासको द्वारा संरक्षित होने का अधिकार प्राप्त होता था |
- खानकाह - खानकाह में सूफी संत रहते थे ये उनका निवास स्थल था | 11 वी शताब्दी तक , सूफीवाद एक अच्छी तरह से विकसित आन्दोलन में विकसित हुआ | सुफो ने शेख , पीर या मुर्शिद के नाम से एक शिक्ष्ण गुरु द्वारा नियंत्रित धर्मशाला या खानकाह ( फारसी ) के आस पास समुदायों को संगठित करना शुरू किया | उन्होंने शिष्यों ( मुरीदो ) को नमाकित किया और एक उतरादिकारी ( खलीफा) नियुक्त किया |
- सूफी सिलसिला - सूफी सिलसिला का अर्थ एक श्रंखला है , जो गुरु और शिष्य के बिच के एक निरंतर कड़ी को दर्शाता है , पैगम्बर मुहम्मद के लिए एक अखंड आध्यात्मिक वंशावली के रूप में फेला है | जब शेख कि म्रत्यु हो गयी , तो उनका मकबरा - दरगाह उनके अनुययियो कि भक्ति का केंद्र बन गया और उनकी कब्र पर तीर्थयात्रा या जियारत कि प्रथा , विशेषकर पुण्यतिथि कि शुरुआत है |
- चिस्तीसिलसिला - 12 वी शताब्दी तक सूफी समुदाय के चिस्ती अधिक प्रभावशाली हो गया था | चिस्ती सूफियो का सबसे महत्वपूर्ण समूह था जो भारत चले गये | इन्होने भारतीय परम्परा को अपनाया | इन्होने सवयं को परिवेश के अनुसार ढाल लिया |
- चिस्ती खानकाह में जीवन - खानकाह सामाजिक जीवन का केंद्र था | चोधवी शताब्दी में घियास्पुर में यमुना नदी के तट पर शेख निजामुदीन कि धमर्शाला बहुत प्रसिद्ध थी | शेख यहाँ रहते थे और सुबह और शाम आंगतुको से से मिलते थे | वहा एक खाली रसोई (लंगर ) थी और यहाँ सुबह से लेकर देर रात हर शेत्र के लोग आता थे | यहाँ आने वालो में अमीर हसन सिज्जी , अमीर खुसरू जियाउद्दीन बरनि शामिल थे |