अध्याय-समीक्षा
- 16 वी और 17 वी शताब्दी के दोरान , लगभग 85% भारतीय आबादी गावो में रहती थी |कृषि लोगो का मुख्य व्यवसाय था | किसान और ज़मीदार कृषि उत्पादन में लगे र्ग्तेठे | कृषि , किशानो और जमीदारों के आम व्यवसाय ने उनके बिच सहयोग , प्रतिस्पर्धा और संघर्ष का रिश्ता बनाया |
- कृषि समाज और मुगल साम्राज्य के एतिहासिक श्रोत - कृषि समजा कि मूल इसकी गाव थी ,जिसमे कई गुना काम करने वाले किशन रहते थे , जेसे मिट्टी को भरना , बीज बोना , फसल कि कटाई करना ,आदि 16वी और 17 शताब्दी के शुरूआती इतिहास के प्रमुख श्रोत क्रोनिकल और दस्तावेज है |
- मुग़ल साम्राज्य - मुगल साम्राज्य के राजस्व का मुख्य श्रोत कृषि था | यही कारण है कि राजस्व अभिग्म्कर्ता , कलेक्टर और रिकोर्ड रखने वाले हमेशा ग्रामीण समाज को नियंत्रित करने कि कोशिश करते है |
- आइन - ए -अकबरी - अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फजल द्वारा अधिक्रत सबसे महत्वपूर्ण क्रोनिकल आइन - ए - अकबरी था | आइन पांच पुस्तको ( दफ्तरों ) से बना है , जिनमे से पहली तीन पुस्तको में अकबर के शासन के प्रशासन का वर्णन है | चोथी और पांचवी पुस्तके ( दफ्तरी ) लोगो कि धार्मिक , शाहिटी और सांस्कृतिक परम्पराओ से सम्बंधित है और इनसे अकबर के ' शुभ कथन ' का संग्रह भी है | अपनी सीमओं के बावजूद , आइन - ए -अकबरी उस अवधि का एक अतिरिक्त साधारण दस्तावेज बना हुआ है |
- अन्य श्रोत - अन्य श्रोत में गुजरात , महाराष्ट्र , राजस्थान के राजस्व रिकॉर्ड और ईस्ट इंडिया कम्पिनी के व्यापक रिकॉर्ड शामिल थ्व | in सभी ने हमे पूर्वी भारत में कृषि संबंधो के उपयोगी विवरण प्रदान किये | मुगल काल के दोरान , किसानो को रेयत कहा जाता था और दो प्रकार के किसान होते थे जेसे कि खुद - काश्त और पाही - काश्त |
- किसान और उनकी जमीन - खुद काश्त उस गाव के निवासी थे जिसमे उन्होंने अपनी जमीने रखी थी |
- पाही -काश्त गेर - निवासी कृषक the जो कि किसी अन्य गावं के थे और ठेके के आधार पर भूमि पर खेती करते थे |
- भूमि कि प्रचुरता , उपलभ्द श्रम और किसानो कि गतिशीलता के कारण कृषि के विकास का निरंतर विस्तार | मानसून भारतीय कृषि कि रीढ़ रहा , लेकिन सिंचाई परियोजना ( नई नहरों कि मरम्मत ) को राज्य का समर्थन मिला | कृषि का आयोजन दो पर्मुख मोसमी फसलो , खरीफ ( शरद ऋतू ) और रबी ( वसंत ) ऋतू कि फासले तब भी उग जाती थी जब बारिश नही होती थी |
- फसलो कि भारी भरमार -साल में कम से कम दो फासले होती थी | जहाँ बारिश या सिंचाई के अन्य साधन हर वक्त मोजूद थे वहाँ रो साल में तीन बार फासले उगाई जाती थी | पैदावार में विविधता पाई जाती उदाहरण के लिए आइन बताती है दोनों मोसम मिलाकर मुग़ल प्रांत आगरा में 39 किस्म कि फासले उगाई जाती थी जबकि दिल्ली प्रांत में 43 किस्म कि फसलो कि पैदावार होती थी | बंगाल में सिर्फ और सिर्फ चावल कि 50 किस्म पैदा होती थी
- तम्बाकू का प्रसार - यह पोधा सबसे पहले दक्कन पंहुचा | वहाँ से 17वी सदी के शुरूआती वर्षो में इसे उत्तर भारत लाया गया | आइन उत्तर भारत कि फसलो कि सूची में तम्बाकू का जिक्र नही करती है | अकबर और उसके अभिजातो ने 1604 इसवी में पहली बार तम्बाकू देखी
- एसा लगता है कि इसी समय तम्बाकू धुम्रपान ( हुक्का या चिलिम में ) करने कि लत ने जोर पकड़ा | जहाँगीर इस बुरी आदत के फेलने से इतना चिंतित हुआ कि उसने इस पर पाबंदी लगा दी यह पाबंदी पूरी तरह से बेअसर साबित हुई क्योकि हम जानते है कि 17 वी सदी के अंत तक तम्बाकू पुरे भारत में खेती , व्यापार और उपयोग कि मुख्य वस्तुओ में से एक थी |
- पंचायत और मुखिया - गाँव कि पंचायतो में बुजुर्गो का जमावड़ा होता था | वे गाँव के महाव्त्पूर्ण लोग हुआ करते the जिनके पास अपनी जमीं के पुश्तेनी अधिकार होते थे | जिन गाँवो में कई जातियों के लोग रहते थे वहां अक्सर पंचायत में विविधता पाई जाती थी | यह एक ऐसा अल्पतंत्र था जिसमे गावं के अलग अलग सम्प्रदायों और जातियों कि नुमाईन्दगी होती थी | छोटे - मोटे और नीच काम करने वाले खेतिहर मजदूरो के लिए इसमें कोई जगह नही होती पंचायत का फेसला गावं में सबको मानना पड़ता था |
- पंचायत का सरदार एक मुखिया होता था जिसे मुकदम या मंडल कहते है | मुखिया का चुनाव गावं के बुजुर्गो कि आम सहमती से होता था और इस चुनाव के बाद उन्हें इसकी मंजूरी जमीदार से लेनी पडती थी | मुखिया अपने ओदे ( पद ) पर तब तक बना रहता था जब उन्हें इसकी मंजूरी जमीदार से लेनी पडती थी |
- ग्रामीण दस्तकार - गाँवो में दस्तकार काफी अच्छी तादाद में रहते थे कही - कही तो कुल घरो के 25 % घर दस्तकारो के थे | कुम्हार , लोहार , बढ़ई, नाइ यहाँ तक कि सुनार जेसे ग्रामीण दस्तकार भी अपनी सेवाए गावं के लोगो को देते थे | जिसके बदले गावं वाले उन्हें अलग - अलग तरीको से उनकी सेवा कि अदायगी करते |
- आम तोर पर या तो उन्हें फसल का एक हिस्सा दे दिया जाता था या फिर गाँव कि जमीन जो खेती लायक होने के बावजूद बेकार पड़ी थी | अदायगी कि सुरत क्या होगी यह शायद पंचायत ही टी करती थी महारास्त्र में ईएसआई जमीने दस्तकारो कि वेतन बन गयी | जिस पर दस्तकारो का अधिकार होता था |
- यही वयवस्था कभी - कभी थोड़े बदले हुए रूप में पाई जाती थी | जहाँ दस्तकार और हर एक खेतिहर परिवार परस्पर बातचीत करके अयादगी कि किसी एक व्यवस्था पर राज़ी होते थे | ऐसे में आमतोर पर वस्तुओ और सेवाओ का विनिमय होता था |
- आइन के मुताबिक मुगल - भारत में जमीदारों कि मिली जुली सेनिक शक्ति इस प्रकार थी - 3,84,558 ( 3 लाख 84 हज़ार 558 ) घुड़सवार 4277057 पैदल 1863 हाथी 4260 तोप 4500 नावं |
- भू - राजस्व प्रणाली - भू राजस्व के इंतजाम में दो चरण थे |
- कर निर्धारण -
- वास्तविक वसूली -
- जमा निर्धारित रकम थी और हासिल सचमुच वसूली गयी रकम | राजस्व निर्धारित करते समय राज्य अपना हिस्सा ज्यादा से ज्यादा रखने कि कोशिश करता था मगर स्थानीय हालात कि वजय से कभी - कभी सचमुच में इतनी वसूली कर पाना संभव नही हो पता था |
- अमील - अमील एक मुलजिम था | जिसकी जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना था कि प्रान्तों में राजकीय नियमो का पालन हो रहा है |
- पोलज - वह जमीन जिसमे एक के बाद एक हर फसल कि सालाना खेती होती है और जिसमे कभी कभी खली नही छोड़ा जाता था |
- परोती - वह जमीन है जिस पर कुछ दिनों के लिए खेती रोक दी जाती है ताकि वह अपनी खोयी हुई ताकत वापस पा सके |
- चचर - वह जमीन है जो 3 - 4 वर्षो तक खली रहती है |
- बंजर - वह जमीन है जिस पर 5 या उससे ज्यादा वर्षो से खेती नही कि गयी हो |
- मुगल साम्राज्य एशिया के उन बड़े साम्राज्यों में से एक था जो 16 वी व 17 वी शताब्दी में सत्ता और संसाधनों पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने में कामयाब रहे | यह साम्राज्य थे मिंग ( चीन में ) , सफावी ( ईरान में ) , आटोमन ( तुर्की में ) | इन साम्राज्यों कि राजनितिक स्थिरता ने चीन से लेकर भू - मध्य सागर तक जमीनी व्यापार का जिवंत जाल बिछाने में मदद कि ||