अध्याय-समीक्षा
- सन 1947 के 14-15 अगस्त की मध्यरात्रि को हिदुस्तान आजाद हुआ | स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधनमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस रात संविधान सभा के एक विशेष सत्र को संबोधिक किया था | उनका यह परषिद भाषण ' भाग्यवधू से चिर-प्रतीक्षित भेट या तिर्स्त विद डेस्टिनी के नाम से जाना गया |
- हिदुस्तान की जनता इसी क्षण की प्रतीक्षा कर रही थी |आपने इतिहास की पाठयपुस्तको में पढ़ा है कि हमारी आजादी की लड़ाई में कई आवाजें बुलंद थीं | बहरहाल दो बातो पर सबकी सहमति थी-पहली बात यह कि आजादी के बाद देश का शासन लोकतंत्रीक सरकार के जरिए चलाया जाएगा और दुसरे यह कि सरकार सबके भले के लिए काम करेगी |इस शासन में गरीबों और कमजोरों का खास ख्याल रखा जाएगा |देश अब आजाद हो चूका था और आजादी से जुड़े इन सपनों को साकार करने का वक्त आ गया था |
- यह कोई आसन काम नही था | आजाद हिदुस्तान का जन्म कठिन परिस्थितियों में हुआ | हिंदुस्तान सन 1947 में जिन हालत के बीच आजाद हुआ शायद उस वक्त तक कोई वैसे हालत में आजाद नहीं हुआ था | आजादी मिली लेकिन देश के बंटवारे के साथ सन 1947 का साल अभूतपूर्व हिसा और विस्थापना की त्रासदी का साल था | आजाद हिंदुस्तान को इन्ही परिस्थितियों में अपने बहुविध लक्ष्यों को हासिल करने की यात्रा शुरू करनी पड़ी | आजादी के उन उथल-पुथल भरे दिनों में हमारे नेताओ का ध्यान इस बात से नही भटका कि यह न्य राष्ट्र चुनौतियों की चपेट में है |
- तीन चुनौतियं थी | पहली और तात्कालिक चुनौती एकता के सूत्र में बँधे एक इसे भारत को गढने की थी जिसमे भारतीय समाज की सारी विविधताओ के लिए जगह हो भारत अपने आकर और विविधता में किसी महादेश के बराबर था| यहाँ अलग-अलग बोलने वाले लोग थे उनकी संस्कृति अलग थी | और वे अलग-अलग धर्मो के अनुयायी थे | उस वक्त आमतौर पर यही माना जा रहा था कि इतनी विविधताओ से भरा कोई देश ज्यादा दिनों तक एकजुट नही रहा सकता | देश के विभाजन के साथ लोगो के मन में समाई यह आशंका एक तरह से सच साबित हुई थी | भारत के भविष्य को लेकर गंभीर सवाल खड़े थे : क्या भारत एक रहा पाएगा ? क्या ऐसा करने के लिए भारत सिर्फ राष्ट्रीय एकता की बात पर सबसे ज्यादा जोर देगा और बाकी उदेश्यों को तिलांजली दे देगा ? क्या ऐसे में हर क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय पहचान को ख़ारिज कर दिया जाएगा ?उस वक्त का सबसे तीखा और चुभता हुआ एक सवाल यह भी था भारत की क्षेत्रीय अखण्डता को कैसे हासिल किया जाए ?
- दुसरी चुनौती लोकतंत्र को कायम करने की थी | आप भारतीय संविधान के बरी में पहले ही पढ़ चुके है आप जानते है कि संविधान में संविधान में मौलिक अधिकारों की गारंटी दी गई है और हर नागरिक को मतदान का अधिकार दिया गया है | भारत ने शासन पर आधारित प्रतिनिधित्व्मुल्क लोकतंत्र को अपनाया | इन विशेषताओ से यह सुनिश्चित हो गई कि लोकतांत्रिक ढाँचे के भीतर राजनीतिक मुकाबले होगे | लोकतंत्र को कायम करने के लिए लोकतात्रिंक संविधान जरूरी होता है लेकिन इतना भरा ही काफी नही होता चुनौती यह भी थी कि संविधान से मेल खाते लोकतांत्रिक व्यवहार-बरताव चलन में आएँ|
- तीसरी चुनौती थी ऐसे विकास की जिससे समूचे समाज का भला होता हो न कि कुछ एक तबकों का | इस मोर्चे पर भए सविधान में यह बात साफ कर दी गई थी कि सबके साथ समानता का बरताव का किया जाए और अमजिक रूप से वचित तबको तथा धार्मिक-सांस्कृतिक अल्पसख्यक समुदयेओ को विशेष सुरक्षा दी जाए | सविधान ने राज्य के नीति-निर्देशक सिदाद्हतो के अंतर्गत लोक-कल्याण के उन लक्ष्यों को भी स्पष्ट कर दिया था जिन्हें राजनीतिक को जरूर पूरा करना चाहिए | अब असली चुनौती आर्थिक विकास तथा गरीबी के खात्मे के लिए कारगर नीतियों को तैयार करने की थी |
- आजादी के तुरंत बाद राष्ट्र-निर्माण की चुनौती सबसे प्रमुख थी | इस पहले अध्याय में हम इसी चुनौती पर ध्यान केन्द्रित करेगें | शूरुआत में उन घटनाओं की चर्चा की जाएगी जिन्हेंने आजादी को एक सन्दर्भ प्रदान किया | इससे हमे समझेने में मदद मिलेगी कि अगले दो अध्यायों में हम लोकतंत्र कायम करने और बराबरी तथा इंसाफ पर आधारित आर्थिक - विकास हासिल करने की चुनौती पर विचार करेगें |
- सन 1947 में बड़े पैमाने पर एक जगह की आबादी दुसरी जगह जाने को मजबूत हुई थी | आबादी का यह स्थानातर्ण आक्स्निक अनियोजीत और त्रासदी से भरा था | मनवा-इतिहास के अब तक ज्ञात सबसे बरे स्थानान्तारानो में से यह था |
- भारत और पाकिस्तान के लेखक कवि तथा फिल्मो- निर्मंताओ ने अपने उपन्यास लघुकथा कविता और फिल्मो में इस मर-काट की न्रीश्स्ता का जिर्क किया विस्थापना और हिंसा से पैदा दुखों को अभिव्यकित दी |
- बिर्टिश इण्डिया दो हिस्सों में था एक हिस्से में ब्रिटिश प्रभुत्व वाले भारतीयों प्राप्त थे तो दुसरे हिंसे में देसी रजवाड़े | ब्रिटिश पर्भुत्व वाले भारतीय प्रातो पर अंग्रेजी सरकार का सीधा नियन्त्रण था | दुसरे तरफ छोटे- बड़े आकरे के कुछ और राज्य थे |
- शंतिपोर्ण बातचीत के जरिए लगभग सभी रजवाडे जिनकी सीमाएं आजाद हिंदुस्तान की नई सीमाओं से मिलती थी | 15 अगस्त 1947 से पहले ही भारतीय संघ में शामिल हो गया |
- हैदराबाद की रियासत बहुत बड़ी थी यह रियासत चारो तरफ से हिन्दुस्तानी इलाके से घिरी थी | पुराने हैदराबाद के कुछ हिस्से आज के महाराष्ट तथा कर्नाटक में और बाकी हिस्से आंध्रप्रदेश में है | निजाम ने सन 1947 के नवंबर में भारत के साथ स्थिति बाहल रखने का एक समझौता किया |
- आजादी के चंद रोज पहले मणिपुर के महाराज बोद्चन्द्र सिंह ने भारत सरकार के साथ भारतीय संघ में अपनी रियासत के विलय के एक सहमती -पत्र पर हस्ताक्षर किए थे | इसकी एवज में उन्हें यह आश्वासन दिया गया थी कि मणिपूर की आंतरिक स्वायत्तता बरकरार रहेगी | जनमत के दबाव में महाराजा ने 1948 के जून में चुनाव के फलस्वरूप मणिपुर की रियासत में संवैधनिक राजतन्त्र कायम हुआ |
- हमारी राष्टीय सरकार ने ऐसे सीमांकन को बनावटी मानकर ख़ारिज कर दिया | उसने भाषा के आधार अपर राज्यों के पुनर्गठन का वायदा किया | सन 1920 में कांग्रेस का नागपुर अधिवेसन हुआ था |
- आंध्र प्रदेश के गठन के साथ ही देश ही के दुसरे हिन्स्सो में भी भाषाई आधार पर राज्यों को गठिन करने का संघर्स चल पड़ा | इन संर्घष से बंधे होकर केंद्र सरकार ने 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया | इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ | इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केंद्र- शासित प्रदेश बनाये गये |
- भाषावार राज्यों के पुनर्गठन की घटन को 50 साल से भी अधिक समय हो गया | राजनीतिक और सता में भागीदारी का रास्ता अब एक छोटे-से अंग्रेजी भाषी अभिजात तबके के लिय ही नही बाकियों के लिय भी खुल चूका था |