अध्याय-समीक्षा
- इस्पात की विश्वव्यापी माँग बढी तो निवेश के निवेश के लिहाज से उडीसा एक महत्वपूर्ण जगह के रूप में उभरा उडीसा में लौह-अयस्क का विशाल भंडार था और अभी इसका दोहन बाकी थे |उडीसा की राज्य सरकार ने लौह-अयस्क की इस अप्रत्याशित माँग को भुनाना चाहा | उसने अन्तराष्ट्रीय इस्पात-निर्माताओ के साथ सहमति -पत्र हस्ताक्षर किए | सरकार सोच रही थी कि इससे राज्य में जरूरी पूंजी- निवेश भी हो जाएगी और रोजगार के अवसर भी संख्या में सामने आएँगे |
- इन सवालों के जवाब कोई विशेषज्ञ नही डे सकता | इस तरह के फैसलों में एक सामाजिक-समूह के हितों को दूसरे सामाजिक -समूह के हितो की तुलना में तौला जाता है | साथ ही मौजूदा पीढी के हितो और आने वाली पीढी के हितो को भी लाभ हानी की तुलना पर मापना पड़ता है | किसी भी लोकतंत्र में ऐसे फैशले जनता द्वारा लोए जाने चहिए या कम-से-कम इन फैसलों पर विशेषज्ञ की स्वीकृति की मुहर जरूर चहिए खनना, और अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञो की राय जाना महत्वपूर्ण है ,
- आजादी के बाद अपने देश में ऐसे कई फैसले लिए गए | इनमे से कोई भी बाकी फैसलों से मुँह फेरकर नही जा सकता था | सारे के सारे फैसले आपस में आर्थिक विकास के एक माँडल या यो कहे कि एक विजन से बदंधे हुए थे | लगभग सभी इस बात पर सहमत थे भारत के विकास का अर्थ आर्थिक स्न्व्रिदी और आर्थिक न्याय दोहा इस बात पर भी सहमती थी कि इस मामले को व्यवस्था उधोगपति किया जाता गई है
- अकसर इन टकरावो के पीछे विकास की धरनाओ का हाथ होता है | उडीसा के उदाहरण से हमे पता चलता है इतना ख देने भर से बात भी से बात नही बनती कि हर कोई विकास चाहता है | जनता के विभिन्न तबको के तबको के लिए विकास के अर्थ अलग-अलग होते हैं ?
- आजादी के बाद के पहले दशक में इस सवाल पर खूब बहसे हुई | उस वक्त लोग -बाग वीकास की बात आते ही पश्चिम का हवला देते थे का पैमाना पश्चिमी मुल्क है | आज भी एक अर्थ में हम इस बात को लक्ष्य कर सकते है |
- आजादी के वक्त हिंदुस्तान के सामने विकास के दो माडल थे | पहला उदारवादी -पूंजीवादी मांडल था | यूरोप के अधिकतर हिन्सो और संयुक्त राज्य अमरीका में यही मांडल अपनाया गया था | दूसरा समाजवादी मांडल था | इसे सोवियत संघ ने अपनाया था|
- योजना आयोग की स्थापना मार्च 1950 में, भारत सरकार ने एक सीधे-सादे प्रस्ताव के जरिए की | यह आयोग एक सलाहकार की भूमिका निभाता है और इसकी सिफारिशे तभी प्रभावकारी हो पाती है जब मंत्रिमंडल उन्हें मंजूर करे |
- नीति - निर्देशिक तत्वों के अंतगर्त यह भात विशेष रूप से कही गई है कि राज्य एक ऐसे समाज -रचना को बनाते - बचाते हुए ....लोगो की भलाई के लिए प्रयास करेगा जहाँ राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाएं सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक होता है | (क) स्त्री और पुरूष सभी नागरिको को आजीविका के पर्याप्त साधनों का बराबर-बराबर अधिकार हो (ख)समुदाय के भौतिक संसाधनों की मिल्कियत और नियन्त्रण को इस तरह बंटा जाएगा कि उससे सर्वसामान्य की भलाई हो : और (ग) अर्थव्यवस्था का संचलन इस तरह नही किया जाएगा कि धन अथवा उत्पादन के साधन एकाध जगह केंदित हो जाएँ और जनसामान्य की भलाई बाधिक हो
- मतभेदों के बावजूद एक बिन्दु पर सभी सहमत थे विकास का काम निजी हाथो में नही सोफा जा सकता और साकार के लिए जरूरी है कि वह विकास का एक खाका अथवा योजना तैयार करे | दरअसल अर्थव्यवस्था के पुननिर्माण के लिए नियोजन के विचार को 1940 और 1950 के दशक में पूरे पूरे विश्वे में जनसमर्थन मिला था |
- जापान और जर्मनी ने योद्ध की विभीषिक झेलने के बाद अपनी अर्थव्यस्था फिर खडी कर ली थी और सोवियत संघ ने 1930 तथा 1940 के दशक में भारी कठिनाई के बीच शानदार आर्थिक प्रगति की थी |
- 1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रारूप जारी हुआ और इसी साल नवबर में इस योजना का वास्तविक दस्तावेज भी किया गया |नियोजन को लेकर देश में जो गहमागहमी पैदा हुई थी वह 1956 से चालू दूसरी पंचवर्षीय योजना के साथ अपने चरम पर पहुँच गई |1961 की तीसरी पंचवर्षीय योजना के समय तक यह माहौल जरी | चौथी पंचवर्षीय योजना 1966 से चालू होना थी |
- प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-1956 की किशिश देश को गरीबी के मकडजाल से निकलने की थी | योजना को तैयारी करने में जुटे विशेषज्ञों में एक के.एन .राज थे | इस युवा अर्थशास्त्री की दलील थी कि अगले दो दशक तक भारत को अपनी चाल धीमी रखनी चहिए |
- प्रथम पंचवर्षीय योजना की शुरूआत में इससे कही ज्यादा बचत की उम्मीद की गई थी | बाद के दिनों में यानी 1960 के दशक से लेकर 1970 के दशक के शुरूआत सालो तक बचत की मात्रा में लगातार कमी आई |
- दूसरी पंचवर्षीय योजना में भारी उधोगो के विकास पर जोर दिया गया | पी.सी. महलनोबिस के नेतृत्व में अर्थ्शास्त्रेयो और योजनाकारों की एक टोली ने यह योजना तैयार की थी | ज्यादा संसाधन लगाए जाने चाहिए | कियो का मानता था कि दूसरी पंचवर्षीय योजना में करीसी के विकास की रणनीति का अभाव था |
- 1960 के दशक के अंत में भारत के आर्थिक विकास की कथा में एक न्य मोड़ आती है | पाँचवे अध्याय में आप पढेगे कि नेहरू की मीरित्वी के बाद कांग्रेस -प्रणाली संकट से घिरने लगी | 1967 के बाद की अवधि में निजी क्षेत्र के उधोगो पर और बाधाएं आयद हुई |14 नीजी बैको का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया| सरकार ने गरीबी की भलाई के लिए अनेक कार्यक्रमों की घोषणा की |
- 1950 से 1980 के बीच भारत की अर्थव्यवस्था सालाना 3-3.5 प्रतिशत की धीमी रफ्तार से आगे बढी | सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ उद्मो में भ्रष्टाचार और अकुशलता का जोर बढ़ा | जनता का भरोसा टूटता देखा नीती-निर्माताओ ने 1980 के दशक के बाद से अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका को कम कर दिया |