अध्याय-समीक्षा
- 1964 के मई में नेहरू की मृत्यु हो गई | वे पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से बीमार चल रहे थे | इससे नेहरू के राजनीतिक उतराधिकारी को लेकर बड़े अंदेशे लगाए गए कि नेहरू के बाद कौन ? लेकिन , भारत जैसे नव-स्वतंत्र देश में इस माहौल में एक और गभीर सवाल हवा में तैर रहा था कि नेहरू के बाद आखिर इस देश में होगा क्या ?
- भारत से बाहर के बहुत से लोगो को संदेह थे कि यहाँ नेहरू के बाद लोकतंत्र कायम भी रह पाएगा या नही | इसके अतिरिक्त, इस बात को लेकर भी संदेह थे देश के सामने बहुविध कठिनाइयाँ आन खडी है और न्य नेतृत्व उनका समाधान खोज पाएगा या नही | 1960 के दशक को खतरनाक दशक कहा जाता है क्योंकि इस दौर में गरीबी, सांप्रदायिकता और क्षेत्रीय विभाजन आदि प्रमुख समस्याएँ थी |
- शास्त्री 1964 से 1966 तक देश के प्रधनमंत्री रहे | इस पद पर वे बड़े कम दिनों तक रहे लिकिन इसी छोटी अवधि में देश ने दो बड़ी चुनौतियों का सामना किया |भारत, चीन युद्ध के कारण पैदा हुई आर्थिक कठिनाईयों से उबरने की कोशिश कर रहा थी | 1965 में पाकिस्तान के साथ भी युद्ध करना पड़ा |
- प्रधनमंत्री के पद पर शास्त्री बड़े कम दिनों तक रहे 10 जनवरी 1966 को ताशकंद में अचानक उनका देहांत हो गया | ताशकंद तब भूतपूर्व सोवियत संघ में था और आज यह उज्बेकिस्तान की राजधानी है |युद्ध की समाप्ति के सिलसिले में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान से बातचीत करने और एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए वे ताशकंद गए थे |
- भारत के राजनितिक और चुनावी इतिहास में 1967 के साल को अत्यंत महत्वपूर्ण पड़ाव माना जाता है दूसरी अध्याय में आप पढ़ चुके कि 1952 के बाद से पूरे देश कांग्रेस पार्टी का राजनीतिक दबदबा कायम था | 1967 के चुनाओं में इस प्र्वीर्ती में गहरा बदलाव आया |
- व्यापक जन-असंतोष और राजनीतिक दलों के धुर्वीकरण के इसी माहौल में लोकसभाओ के लिए 1967 के फरवरी माह में चौथे आम चुनाव हुए | कांग्रेस पहली बार नेहरू के बिना मतदाताओ का सामना कर रही थी |
- राजनितिक बदलाव की यह नाटकीय स्थिति आपको राज्यों स्पस्ट नजर आयगी | दो अन्य राज्य में दलबदल के कारण यह पार्टी साकार नही बनी सकी | जिन 9 राज्यों में कांग्रेस के हाथ से सता निकल गई थी ,कांग्रेस पंजाब , हरियाणा,उतर प्रदेश, मध्य प्रदेश , बिहार , पश्चिम बंगाल , उडीसा , मद्रास और केरल में सरकार नही बनी सकी |
- 1967 के चुनावों की एक खास बात दल - बदल भी है | इसने राज्यों में सरकारों के बनने - बिगरने में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी |कोई जनप्रतिनिधि किसी खास दल के चुनाव चिन्ह को दल में लगाया जाता है 1967 के आम चुनावों के बाद कांग्रेस को छेड़ने वाले विधायको की तीन राज्यों - हरियाणा , मध्य प्रदेश औरे उतर प्रदेश - में गैर -कांग्रेस सकारो को बहल करने में अहम भोमिका निभाई |
- इंदिरा गांधी को असली चुनौती विपक्ष से नही बलिक खुद अपनी पार्टी के भीतर से मिली | उन्हें सिंडिकेट से निपटना पड़ा | सिंडीकेट कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओ का एक समूह था |सिडिकेट ने इंदिरा गांधी को प्रधनमंत्री बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी |
- सिडिकेट और इंदिरा गांधी के बीच की गुटबाजी 1969 में राष्ट्रपति पद के चुनाव के समय खुलकर सामने आ गई | तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मीत्यु के कारण उस साल राष्टपति का पद खाली था
- चौदह अग्रणी बैको के राष्ट्रीयकरण और भूतपूर्व राजा - महाराजाओ को प्राप्त विशेषधिकार यानी प्रिवी पर्स को समाप्त करने जैसी कुछ बड़ी और जनप्रिय नीतियों की घोषणा भी की |वी.वी. गिरी का छुपे तौर पर समर्थन करते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खुले आम अंतरात्मा की आवाज पर वोट डालते को कहा |
- 1969 के नवम्बर तक सिडिकेट की अगुवाई वाले कांग्रेस ( आग्र्नैजेशन ) और इदरा गांधी की अगुवाई वाले कांग्रेश खेमे को कांग्रेश (रिकिव्जिनिस्ट) कहा जाने लगा था | विचारधाराओ की लड़ाई के रूप में पेश किया | उन्हेंने इसे समाजवादी और पुरातनपन्थी तथा गरीबो के हिमायती और अमीरों के तरफदार के बीच की लड़ाई करार दिया |
- दूसरी राजनीतिक दलों पर अपनी निर्भरता समाप्त करने संसद में अपनी पार्टी की स्थिति मजबूत करने और अपने कार्यकर्मो के पक्ष में जनादेश हासिल करने की गरज से इदिरा गांधी की सरकार ने 1970 के दिसंबर में लोकसभा भंग करने की सिफारिश की | लोकसभा के लिए पाँचवे आम चुनाव 1971 के परवरी माह में हुई |
- इस गठबधन को लोकसभा की 375 सीट मिली और इसने कुल 48.4 प्रतिशत वोट साहिल किए | अकेले इदिरा गांधी की कांग्रेस (आर) ने 352 सीटे और 44 प्रतिशत वोट हासिल किथे | अब जरा इस तस्वीर की तुलना कांग्रेस (ओ) के उजाड़ से करे : इस पार्टी को महज 16 सीटे मिलीं| अपनी भारी -भरकम जीत के साथ इदरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस ने अपने दावे को साबित कर दिया |
- 1971 के लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद पूर्वी पाकिस्तान ( अब बंगलादेश ) में एक बड़ा राजनीतिक और सैन्य संगठन उठ खड़ा हुआ | 1971 के चुनावों के बाद पूर्वी पाकिस्तान में संकट पैदा हुआ और भारत -पाक के बीच युद्ध छिड़ गई | 1972 के विधानसभा के चुनावों में उनकी पार्टी को व्यापक सफलता मिली |