अध्याय-समीक्षा
- 1967 के बाद से भारतीय राजनीति में जो बदलाव आ रहे थे उनके बारे में हम पहले ही पढ़ चुके है | इंदिरा गाँधी क्छावर नेता के रूप में उभरी थी और उनकी लोकप्रियता अपने चरम पर थी | इस दौर में दलगत प्रतिस्पर्धा कही ज्यादा तीखी और धुर्वीक्रीत हो चली थी | इस अवधि में न्यायपालिका और सरकार के आपसी रिश्तो में भी तनाव आए | सर्वाच्च न्यायालय ने सरकार की कई पहलकदमियो को संविधान के विरूद माना |
- 1971 के चुनाव में काग्रेस ने गरीबी हटाओ ' का नारा दिया था | बहरहाल 1971-72 के बाद के सालो में भी देश की सामाजिक- आर्थिक दशा में खास सुधर नही हुआ | 1973 में चीज की कीमतों में 23 फीसदी और 1974 में 30 फीसदी का इजाफा हुआ | इस तीर्व मुल्यव्रीदी से लोगों को भारी कठिनाई हुई |
- 1972-73 के वर्ष में मानसून असफल रहा | इससे क्रीषी की पैदावार में भरी गिरावट आई |खाधान्न का उत्पादन 8 प्रतिशत कम हो गया | आर्थिक स्थिति की बदहाली को लेकर पूरे देश में असंतोष का माहौल था | 1960 के दशक से ही छात्रो के बीच विरोध के स्वर उठने लगे थे | ये स्वर इस अवधि में और ज्यादा प्रबल हो उठे |
- 1974 के मार्च माह में बढ़ती हुई कीमतों खाधान्न के अभाव , बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाप बिहार में छात्रों ने आदोनल छेड़ दिया | आदोलन के कर्म में उन्होंने जयप्रकाश नारायण (जेपी) को बुलावा भेजा | जयप्रकाश नारायण के नेत्रर्त्व में चल रहे आदोलन के साथ ही साथ रेलवे के कर्मचारीयों ने भी एक राष्ट्रव्यापी का आहन किया |
- नक्सलवादी आदोलन ने धनी भुस्वमीयो से बलपूर्वक जमीन छीनकर गरीबी और भूमिकाहीन लोगो को दी | फिलहाल 9 राज्यों के लगभग 75 जिले नक्सलवादी हिसा से प्रभावित है इनमे अधिकार बहुत पिछड़े इलाके है और यहाँ आदिवासियों की जनसख्या ज्यादा है |
- दो और बातो ने न्यायपालिका और कार्यपालिका के संबंधों में तनाव बढ़ाया | 1973 में केश्वंद भारती के मुकदमे में सर्वाच्च न्यायालय द्वारा फैसला सुनाने के तुरंत बाद भारत के मुख्यालय न्यायाधीश का पद खाली हुआ | लेकिन 1973 में सरकार ने तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों की अनदेखी करके न्यायमूर्ति ए .एन . रे को मुख्य न्यायधीश नियुक्त किया|
- 12 जून 1975 के दिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने एक फैसला सुनाया | राजनारायण इंदिरा गाँधी के खिलाप 1971 में बतौर उम्मेदवार चुनाव में खड़े हुए थे |इन दलों ने 25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में विशाल प्रदर्शन किया |
- 25 जून 1975के दिन सरकार ने घोषणा की देश में गडबडी की आशंका है और इस तर्क के साथ उसने संविधान के अनुच्छेद 352 को लागू कर दिया |तो गंभीर संगत की घड़ी आन पड़ी है और इस वजह से आपातकाल की घोषणा जरूरी हो गई है |
- 42 वे संशोधन के जरिए हुई अनेक बदलाव में एक था - देश की विधयिका के कार्यकाल को 5 से बढ़कर 6 साल करना | यह व्यवस्था मात्र आपातकाल की अवधि भर के लिए नही की ही थी |इस तरह देखे तो 1971 की बाद ऍम चुनावों 1976 के बदले 1978 में करवाए जा सकती थे |
- दरअसल कुल 676 नेताओ की गिरफ्तारी हुई थी | शाह आयोग का आकलन थी कि निवारक नजरबंदी के कानूनों के तहत लगभग एक लाख ग्यारह हजार लोगो को गिफ्तार किया गया | शाह आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखाया है कि निगम महाप्रबंधन को दिल्ली के लेफित्नेट -गवर्नर के दफ्तर से 26 जून 1975 की रात 2 बजे मौखिक आदेश मिला है |
- 18 महीने के आपातकाल के बाद 1977 के जनवरी माह में सरकार ने चुनावों करने का फैसला किया |1977 के मार्च में चुनावों हुए | ऐसे में विपक्ष को चुनावों तैयारी का कम समय होता है |
- कांग्रेस को लोकसभा की मात्र 154 सीटे मिली थी | उसे 35 प्रतिशत से भी कम वोट हासिल हुए | जनता पार्टी और उसने साथी दलों को लोकसभा की कुल 542 सीटे में से 330 सीटे मिली खुद जनता पार्टी अकेले 295 सीटे पर जीते गई थी
- 1980 के जनवरी में लोकसभा के लिए सिरे से चुनाव हुई | इंदिरा गाँधी के नेत्रित्व में कांग्रेस पार्टी ने 1980 के चुनाव में एक बार फिर 1971 के चुनावों वाली कहानी दुहरात हुई भरी सफलता हासिल की कांग्रेस पार्टी को 353 सीटे मिली और वह सता में आई |1977-79 के चुनावों ने लोकतांत्रिक राजनितिक का एक और सबका सिकाया -सरकार अगर अस्थिर हो और भीतर कलह हो जाता है |
- 1977 और 1980 के चुनावों के बीच दलगत प्रणाली में नाटकीय बदलाव आए |1969 के बाद से कांग्रेस का सबलो समाहित करके चलाने वाला स्वभाव बदलना शुरू हुवा |
- आपातकाल और इसके आसपास की अवधि को हम संवैधानिक संघत की अवधि के रूप में भी देखा इन शक्तियों का आपातकाल के दौरान दुरूपयोग हुआ |