अध्याय-समीक्षा
- आपने पिछले अध्याय में पढ़ा था कि इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बने इंदिरा गाँधी की हत्या के कुछ दिनों बाद ही 1984 में लोकसभा के चुनाव हुए | राजीव गाँधी की अगुवाई में कांग्रेस को इस चुनाव में भरी विजय मिली |1980 के दशक के आखिर के सालो में देश में ऐसे पांच बड़े बदलाव आए , जिनका हमारी आगे की राजनीति पर गहरा असर पड़ा |
- पहला इस दौर की एक महत्वपूर्ण घटना 1989 के चुनावों में कांग्रेस की हार है | जिस पार्टी ने 1984 में लोकसभा की 415 सीटें थीं वह इस चुनाव में हज 197 सीटें ही जीत सकी 1991में एक बार फिर मध्यावधि चुनाव हुए और कांग्रेस इस बार अपना आँकड़ा सुधरते हुए सता में आयी | बहरहाल 1989 में ही उस परिघटना की समाप्ति हो थी | 1989 के बाद भी देश पर किसी अन्य पार्टी के अजाय शासन ज्यादा दिनों तक रहा |
- इस तरह 1989 के चुनावों से भारत में गठबधन की राजनीतिक के एक लंबे दौर की शुरूआत हुई | इसके बाद से केंद्र में 9 सरकारों बनी यह बात 1989 के राष्ट्रीय मोर्चा सरकार 1996 और 1997 की संयुक्त मोर्चा सरकार 1998 और 1999 की राजग तथा 2004 की संप्रग सरकारों पर समान रूप से लागू होती है |
- पाँचवे अध्याय में हम यह बात पढ़ चुकी है कि 1960 के दशक से विभिन्न समूह कांग्रेस पार्टी से अलग होने लगे और इन्होने अपनी खुद की पार्टी बनायी | कि 1977 के बाद के सालों में कई क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ | इन सारे कारणों से कांग्रेस पार्टी कमजोर हुई लेकिन कोई दूसरी पार्टी इस तरह से नही उभरा पायी कि कांग्रेस का विकल्प बने सके |
- 1980के दशक में अन्य पिछड़ा वर्गो के बीच लोकप्रिय ऐसे ही राजनितिक समूहों को जनता दल ने एकजुट किया | राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का फेशला किया | अन्य पिछड़ा वर्ग की राजनीती को सुगठित रूप देने में मदद मिली |
- दक्षिण के राज्यों में अगर बहुत पहले से नही तो भी कम-से-कम 1960 के दशक से अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान चला आ रहा था |1977-79 की जनता पार्टी की सरकार के समय उतर भारत में पिछड़े वर्ग के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती से आवाज उठिए गई |
- 1980 में भरतीय जनता पार्टी (भाजपा) बनाई | बहरहाल भाजपा को 1980और 1984 के चनावो में खास सफलता नही मिली | 1986 के बाद इस पार्टी ने अपनी विचारधारा में हिन्दू राष्ट्रवाद के तत्वों पर जोर देना शुरू किया |
- 1100 व्यक्ति जिनमे ज्यादातर मुसलमान थे इस हिसा में मारे गए |1984 के सिख -विरोधी दंगो के समान गुजरात के दंगा से भी यह जाहिर हुआ राजनितिक उदेश्यों के लिए धार्मिक भावानाओ को भडकाना खतरनाक हो सकता है | इससे हमारी लोकतांत्रीक राजनीतिक को खतरा पैदा हो सकता है |
- 1989 के बाद से उन्हें इतने वोट नही मिली कि वे कुला मतो के 50 फीसदी से ज्यादा हो आप देखेगे कि ये सीटे लोकसभा की कुल सीटों के 50 फीसदी से अधिक नही है तो बाकी वोट और सीटे कहाँ गए ?
- 2004 के चुनावों में एक हद तक कांग्रेस का पुनरुत्थान भी हुआ | 1991 के बाद इस पार्टी की सीटों की सख्या एक बार फिर बढी | 1990 के बाद से हमारे सामने जो राजनीतिक प्रकिर्या आकर ले रही है ,
- जन आन्दोलन और संगठन विकास के नए रूप स्वप्न और तरीको की पहचान कर रहे है गरीबी विश्थापन न्यूनतम मजदूरी आजीविका और सामाजिक सुरक्षा के मसले जन आन्दोलन के जरिए राजनीतिक एजेंडे के रूप में सामने आ रहे है |