अध्याय-समीक्षा
- बौद्ध धर्म के संस्थापक सिद्धार्थ थे जिन्हें गौतम के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म लगभग 2500 वर्ष पूर्व हुआ था।
- बुद्ध क्षत्रिय थे तथा 'शाक्य' नामक एक छोटे से गण से संबंधित थे | युवावस्था में ही उन्होंने ज्ञान की खोज में घर के सुखो को छोड़ दिया |
- बुद्ध ने पहली बार वाराणसी के निकट सारनाथ में पहली बार उपदेश दिया |
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बुद्ध ने कहा की यह जीवन दुखो से भरा हैं और ऐसा हमारी ईच्छा तथा लालसाओं के कारण होता हैI आत्मसंयम अपना कर हम ऐसी लालसा से बच सकते हैI बुद्ध ने कहा की लोग दयालु हो तथा मनुष्य के साथ - साथ जानवरों का भी आदर करेI हमारे कर्म के परिणाम ,चाहे वे अच्छे हो या बुरे , वे हमारे वर्तमान जीवन के साथ -साथ भविष्य को भी प्रभावित करती हैI
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कभी-कभी हम जो चाहते हैं वह प्राप्त कर लेने के बाद भी
संतुष्ट नहीं होते हैं एवं और अधिक अथवा अन्य वस्तुओं को पाने की
इच्छा करने लगते हैं। बुद्ध ने इस लिप्सा को तृष्णा कहा है | -
बुद्ध का मानना था की हमारे कर्म के परिणाम ,चाहे वे अच्छे हो या बुरे , वे हमारे वर्तमान जीवन के साथ -साथ भविष्य को भी प्रभावित करती हैI
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बुद्ध ने अपनी शिक्षा प्राकृत भाषा में दी |
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बुद्ध ने कहा कि लोग किसी शिक्षा को केवल इसलिए नहीं स्वीकार करें कि यह उनका उपदेश है, बल्कि वे उसे अपने विवेक से मापें।
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उपनिषद् का शाब्दिक अर्थ है ‘गुरू के समीप बैठना’।उपनिषद् उत्तर वैदिक ग्रंथों का हिस्सा थे। इन ग्रंथों में अध्यापकों और विद्यार्थियों के बीच बातचीत का संकलन किया गया है।
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वह वज्जि संघ के लिच्छवि कुल के एक क्षत्रिय राजकुमार थे।महावीर जैन धर्म के सार्वधिक महत्वपूर्ण विचारक थे |
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महावीर ने 30 वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया और जंगल में रहने लगे । बारह वर्ष तक उन्होंने कठिन व एकाकी जीवन व्यतीत किया। इसके बाद उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ|
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महावीर की शिक्षाएं सरल तथा प्राकृत भाषा में थी |यही कारण है कि साधारण जन भी उनके तथा उनके अनुयायियों की शिक्षाओं को समझ सके |
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महावीर का मानना था की सत्य जानने की इच्छा रखने वाले प्रत्येक स्त्री व पुरुष को अपना घर छोड़ देना चाहियेI उन्हें अहिंसा के नियमो का सख्ती से पालन करना चाहियेI किसी भी जीव को न तो काटना चाहिये और न ही हत्या करनी चाहियेI
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महावीर का कहना था,"सभी जीव जीना चाहतें है ' सभी को जीवन प्रिय हैI"
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महावीर के अनुयायियों को भोजन के लिए भिक्षा मांगकर सादा जीवन बिताना होता था | उन्हें पूरी तरह से ईमानदार होना पड़ता था तथा चोरी न करने के लिए उन्हें सख्त हिदायत थी | उन्हें ब्रह्मचार्य का पालन करना पड़ता था पुरुषो को वस्त्र सहित सबकुछ त्याग देना पड़ता था |
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जैन शब्द ‘जिन’शब्द से निकला है जिसका अर्थ है ‘विजेता’।
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संघ में प्रवेश लेने वाले स्त्री व पुरुष शहरो व गाँवों में जाकर भिक्षा मांगकर अपना सदा जीवन जीते थे यही कारण था की उन्हें भिक्खु तथा भिक्खुणी कहा गया है जिसका अर्थ है साधू तथा साध्वी |
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विहार ऐसे शरणस्थलों को कहा जाता है जो भिक्खु तथा भिक्खुणीयो द्वारा स्वयं तथा उनके समर्थको के लियें बनाए गए थे |
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संघ की स्थापना महावीर तथा बुद्ध ने की | महावीर तथा बुद्ध दोनों का मानना था की घर का त्याग करने पर ही सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है | यहाँ घर का त्याग करने वाले लोग एक साथ रहते थे |
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संघ में रहने वाले बौद्ध भिक्षुओ के लिए बनाए गए नियम विनयपिटक ग्रन्थ में लिखे गए है |
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संघ में प्रवेश लेने वाले लोगो को कई नियमो का पालन करना पड़ता था | संघ में पुरुषो और स्त्रियों के रहने के लिए अलग -अलग व्यवस्था थी |सभी व्यक्ति संघ में प्रवेश ले सकतें थे | एक स्त्री को संघ में प्रवेश लेने के लिए अपने पति की अनुमति लेनी पड़ती थी | संघ में प्रवेश लेने वालें स्त्री व पुरुष भिक्षा मांगकर अपना सदा जीवन जीते थे |
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संघ में प्रवेश के लिए बच्चों को अपने माता-पिता से, दासों को अपने स्वामी से, राजा के यहाँ काम करने वाले लोगों को राजा से, तथा कर्जदारों को अपने देनदारों से अनुमति लेनी होती थी।