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अध्याय-समीक्षा
- हमारे शरीर में स्वतः ही अनेक गतियाँ निरंतर होती रहती हैं।
- चलना, टहलना, दौड़ना, उड़ना, छलाँग मारना, रेंगना एवं तैरना इत्यादि जंतुओं के एक स्थान से दूसरे स्थान
तक जाने के कुछ ढंग हैं। - हम शरीर के विभिन्न भागों को उसी स्थान से मोड़ अथवा घुमा पाते हैं, जहाँ पर दो हिस्से एक-दूसरे से जुड़े हों -
उदाहरण के लिए कोहनी, कंधा अथवा गर्दन। - हम शरीर के विभिन्न भागों को उसी स्थान से मोड़ अथवा घुमा पाते हैं, जहाँ पर दो हिस्से एक-दूसरे से जुड़े हों इन स्थानों को संधि कहते है।
- कंदुक-खल्लिका संधि सभी दिशाओं में गति करता है |
- घुटना हिंज संधि का एक उदाहरण है |
- हमारे सिर की कुछ संधियों में अस्थि हिलती नहीं सकती ऐसी संधियों को अचल संधि कहते है।
- हमारे शरीर की सभी अस्थियाँ ठीक इसी प्रकार शरीर को एक सुंदर आकृति प्रदान करने के लिए एक ढाँचे का निर्माण करती हैं। इस ढाँचे को कंकाल कहते हैं।
- पसलियाँ वक्ष की अस्थि एवं मेरुदंड से जुड़कर एक बक्से की रचना करती हैं। इस शंकुरूपी बक्से को पसली-पिंजर कहते हैं।
- अस्थियाँ एवं उपस्थियाँ संयुक्त रूप से शरीर का कंकाल का निर्माण करते हैं |
- गति करते समय पेशियों के संकुचन से अस्थियाँ खींचती हैं |
- ऐसी संधि जो केवल आगे और पीछे एक ही दिशा में गति करती है उसे हिंज़ संधि कहते हैं |
- घोंघा पेशीय पाद की सहायता से गति करता हैं |
- केंचुए में गति शरीर की पेशियों के बारी-बारी से विस्तरण एवं संकुचन से होती है।
- पेशियों के जोड़े के एकांतर क्रम में सिकुड़ने एवं फैलने से अस्थियाँ गति करती हैं।
- मछली के शरीर पर पंख होते हैं जो तैरते समय जल में संतुलन बनाए रखने एवं दिशा निर्धारण में सहायता करते हैं।