अभ्यास - समीक्षा:
- हम प्रायः देखते हैं कि लिंगबोध से हमारा आशय उन अनेक सामाजिक मूल्यों और रूढ़िवादी धारणाओं से है जिसे हमारे ही संस्कृति ने हमारे स्त्रीलिंग और पुल्लिंग होने के जैविक अंतर के साथ जोड़ दिया है। यह शब्द हमें बहुत-सी असमानताओं और स्त्री व पुरुष के बीच के शक्ति सम्बन्धों को भी समझने में सहायता प्रदान करता है।
- इस पाठ मे हमलोग देखेंगे कि कैसे समाज में स्त्री और पुरुष के लिए अलग-अलग भूमिकाएँ देखी जाती है, और कैसे-कैसे मूल्य निर्धारण किया जाता है और यहीं से भेद और असमानता की शुरुआत होती है।
- इसमें बताया गया है कि कैसे - कैसे सामोआ (प्रशांत महासागर के दक्षिण मे स्थित छोटे-छोटे द्वीप) द्वीप के लड़के-लड़कियों का देखभाल होता था।
- 1920 के दशक में तो बच्चे स्कूल नहीं जाते थे।
- उस समय बच्चे अपने बड़ों के साथ जाकर मच्छलियों को पकड़ना सीखते थे।
- बचपन मे जब बच्चे चलना शुरू करते थे तो अब उनका देखभाल बड़े बच्चे करते थे।
- और माँ अपने पति के साथ हाथ बटाती थी।
- जब लड़का 9 साल के हो जाता था तो वो बड़ों बच्चों के साथ मिलकर मछली पकड़ना या कोई दूसरा काम करते थे।और वहीं लड़कियां जब तक 14 वर्ष तक बच्चों की देखभाल व बड़ों के छोटे-मोटे काम में हाथ बटाती थी। और 14 वर्ष के बाद लड़कियां मछली पकड़ने या कोई दूसरा काम जैसे डलियाँ बनाना, बगानों में काम करना इत्यादि करने के लिए स्वतंत्र होती थी। ये लड़कों की भी उनके कामों मे मदद करती थी।
- इसमें मध्य प्रदेश के एक शहर की लड़कों और लड़कियों को लेकर वर्णन किया गया है।
- बताया गया है कि कैसे लड़कों को स्कूल के समय खेलने के लिए खुले मैदान थे और वहीं लड़कियों के लिए बंद बाउंडरी।
- लड़के वहीं खुले मैदान से होकर जाते थे और वहीं लड़कियों को संकरी गली से होकर जाना होता था (उनको या लड़की के घर वालों को दर लगता होगा कि कोई छेड़ न दे, इसलिए वो गली से आती होंगी)। ऊपर 1920 या 1960 के दशक से भी पता चलता है कि कैसे समाज, लड़के और लड़कियों मे अंतर पैदा करता है।
- इसमे घरेलू कामों के मूल्य के बारे में भी बताया गया है कि घर के काम को औरतें आसानी से कर लेती है जबकि पुरुष को बहुत परेशानी होती है। ऐसा इसलिए कि लोग रूढ़िवादी सोच अपनाते हुये काम करते हैं कि ये काम केवल पुरुष ही कर सकते है या केवल औरतें भी कर सकती है