अध्याय - समीक्षा:
- लक्ष्मी लाकरा, जो कि झारखंड के एक गरीब आदिवासी परिवार की 27 वर्षीय पुत्री है। उतरी रेलवे की वो पहली महिला चालक है। ये पढ़ने के साथ-साथ घर के कामों मे हाथ बटाती थी। और सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इन्होंने पहले ही प्रयास मे सफलता मिली।
- दूसरी कहानी है रमाबाई ( 1858-1922 ), महिला-शिक्षा की ये योद्धा कभी स्वयं स्कूल नहीं गयी, पर अपने मटा-पिता से उन्होने पढ़ना-लिखना सीख लिया। उन्हें पंडिता की उपाधि दी गई, क्योंकि वे संस्कृत पढ़ना-लिखना जानती थी जो उस समय की औरतों के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी।
- उन्होने 1898 में, पुणे के पास खेड़गाँव में एक मिशन स्थापित किया जहां विधवा औरतों और गरीब औरतों को पढ़ने-लिखने तथा स्वतंत्र होने की शिक्षा दी जाती थी।
- रुकैया सखावत हुसैन (1880-1932), ये धनी परिवार में जन्मी थी और इन्हें उर्दू भाषा का ज्ञान विरासत में मिला था। लेकिन ये बंगला और अँग्रेजी सीखना चाहती थी। इन्हें ये भाषा सीखने से रोका गया लेकिन ये अपने भाई और बहन की मदद से बंगला और अँग्रेजी सीखिए।
- 1905 में अभ्यास के लिए इनहोने एक कहानी लिखी जिसका शीर्षक था “सुल्ताना का स्वप्न” जिसमे ये हवाईजहाज उड़ना और कारें चलाने का स्वप्न देख रही थी।
- 1910 में इन्होंने कोलकाता में लड़कियों के लिए एक स्कूल खोला जो आज भी कार्य कर रहा है।
- 1961 की जनगणना के अनुसार, 40% लड़के (7 वर्ष या उससे अधिक) शिक्षित थे (कम से कम अपना नाम लिख लेते थे) और 15% महिलाएँ शिक्षित थी।
- 2011 की जनगणना के अनुसार 82 % लड़के व पुरुष शिक्षित हो गए जबकि 65% लड़कियां व औरतें।अभी भी इनके बीच का अंतर समाप्त नहीं हुआ।
- अभी हमलोग जैसे देखते हैं कि अब महिलाएँ और लड़कियों को पढ़ने और स्कूल जाने के साथ-साथ कानूनी सुधार, हिंसा और स्वास्थ्य से संबन्धित सभी अधिकार प्राप्त है। ये सब इनलोगों को ऐसे हीं नहीं मिला बल्कि ये लोग अपने हक के लिए संघर्ष किए जिसे “महिला आंदोलन” का नाम दिया गया। इस आंदोलन में महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।