अध्याय - समीक्षा:
- इन्होने संगम साहित्य (तमिल) की शिक्षाओं को अपने मूल्यों में समावेशित किया।
- नयनार और अलवार घुमक्कड़ साधु संत थे, वे स्थानीय देवी-देवताओं की प्रशंसा में सुन्दर कविताएं रचकर उन्हें संगीतबद्ध कर दिया करते थे।
- नयनार संत संख्या में 63 थे उनमे सर्वाधिक प्रसिद्ध थे-अप्पार , सबंदर और मणिककावसागार। उनके गीतों के दो संकलन है -तेवरम और तिरुवाचकम।
- अलवार संत संख्या में 12 थे उनमे सर्वाधिक प्रसिद्ध थे -पेरियअलवार , उनकी पुत्री अंडाल , तोंडरडिप्पोडी अलवार और वाममालवार।
- इसका प्रारम्भ बसवन्ना , अल्लामाप्रभु और अक्कमहादेवी के द्वारा।
- यह आंदोलन बारहवीं शताब्दी के मध्य में कर्नाटक में प्रारम्भ हुआ।
- ये सभी प्रकार के कर्मकांडों और मूर्तिपूजा के विरोधी थे।
- इन संत कवियों ने सभी प्रकार के कर्मकांडों, पवित्रा के ढोंगो और जन्म पर आधारित सामाजिक अन्तरो का विरोध किया।
- इन्होने सन्यास के विचार को ठुकराकर , परिवार के साथ रहकर, जरुरत मंदो की सेवा करते हुए जीवन विताने को अधिक पसंद किया।
- मुस्लिम विद्वानों (उलेमा) ने सरियत नाम से एक धार्मिक कानून बनाया।
- मध्य एशिया के महान सूफी संतो में गज्जाली , रूमी और सादी प्रमुख थे।
- इन्होने औलिया या पीर की देख रेख में जिक्र (नाम का जाप) , चिंतन , सभा (गाना) रक्स (नृत्य) निति चर्चा , साँस पर नियंत्रण आदि रीतियों का विकास किया।
- चिस्ती सिलसिला इन सभी सिलसिलो में सबसे अधिक प्रभावशाली था , जिसमे अजमेर के ख्वाजा मुइनुद्दीन चिस्ती , दिल्ली के कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी, पंजाब के बाबा फरीद, दिल्ली के ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया और गुलबर्ग के बंदानवाज गिरसुंदराज थे।
- गुरुनानक ने उपासना और धार्मिक कार्यो के लिए जो जगह नियुक्त की थी उसे ' धर्मसाल ' कहा गया। आज इसे गुरुद्वारा कहते है।
- मृत्यु (1539) से पूर्व बाबा गुरुनानक ने लेहणा (गुरु अंगद) को उत्तराधिकारी चुना।
- गुरु अंगद ने बाबा गुरु नानक की रचनाओं का संग्रह गुरुमुखी में किया और उस संग्रह में अपनी कृतियाँ भी जोड़ दी।
- लूथर ने लैटिन भाषा के बजाए आमलोगों की भाषा को प्रोत्साहन किया।
- बाइबिल जर्मन भाषा में अनुमोदन किया।
- वे दण्डमोचन प्रथा के घोर विरोधी थे।