अभ्यास - समीक्षा:
- मुगल बादशाहों में औरंगजेब आखिरी शक्तिशाली बादशाह थे। उन्होंने वर्तमान भारत के एक बहुत बड़े हिस्से पर नियंत्रण स्थापित कर लिया था।
- 1707 में उनकी मृत्यु के बाद बहुत सारे मुगल सूबेदार और बड़े-बड़े जमींदार अपनी ताकत दिखाने लगे थे। उन्होंने अपनी क्षेत्रीय रियासतें कायम कर ली थीं।
- अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध तक राजनीतिक क्षितिज पर अंग्रेजों के रूप में एक नयी ताकत उभरने लगी थी।
- अंग्रेज पहले-पहल एक छोटी-सी व्यापारिक कंपनी रूप में भारत आए थे | बाद में विशाल साम्राज्य के स्वामी बन बैठे |
- कैप्टन हडसन द्वारा बहादुर शाह ज़फर और उनके बेटों की गिरफ्तारी हुई।
औरंगजेब के बाद कोई मुगल बादशाह इतना ताकतवर तो नहीं हुआ लेकिन एक प्रतीक के रूप में मुगल बादशाहों का महत्व बना हुआ था। - जब 1857 में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारी विद्रोह शुरू हो गया तो विद्रोहियों ने मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फर को ही अपना नेता मान लिया था। जब विद्रोह कुचल दिया गया तो कंपनी ने बहादुर शाह ज़फर को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया और उनके बेटों को ज़फर के सामने ही मार डाला।
- वाणिज्यिक - एक ऐसा व्यावसायिक उद्यम जिसमें चीजों को सस्ती कीमत
पर ख़रीद कर और ज़्यादा कीमत पर बेचकर यानी मुख्य रूप से व्यापार के जरिए मुनाफा कमाया जाता है। - सन् 1600 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने इंग्लैंड की महारानी एलिशाबेथ प्रथम से चार्टर अर्थात इजाजतनामा हासिल कर लिया जिससे कंपनी को पूरब से व्यापार करने का एकाध्किर मिल गया।
- इस इज़तनामे का मतलब यह था कि इंग्लैंड की कोई और व्यापारिक कंपनी
इस इलाके में ईस्ट इंडिया कंपनी से होड़ नहीं कर सकती थी। - उस ज़माने में वाणिज्यिक कंपनी मोटे तौर पर प्रतिस्पर्धा से बचकर ही मुनाफा कमा सकती थीं। अगर कोई प्रतिस्पर्धी न हो तभी वे सस्ती चीज़े ख़रीदकर उन्हें ज़्यादा कीमत पर बेच सकती थीं।
- पुर्तगाल के खोजी यात्री वास्को द गामा ने ही 1498 में पहली बार भारत तक पहुँचने के इस समुद्री मार्ग का पता लगाया था।
- सत्राहवीं शताब्दी की शुरुआत तक डच भी हिंद महासागर में व्यापार की संभावनाएँ तलाशने लगे थे। कुछ ही समय बाद फांसीसी व्यापारी भी सामने आ गए।
- यूरोप के बाजारों में भारत के बने बारीक सूती कपड़े और रेशम की जबरदस्त माँग थी। इनके अलावा काली मिर्च, लौंग, इलायची और दालचीनी की भी जबरदस्त माँग रहती थी।
- यूरोपीय कंपनी के बीच इस बढ़ती प्रतिस्पर्धा से भारतीय बाजारों में इन चीज की कीमतें बढ़ने लगीं और उनसे मिलने वाला मुनाफा गिरने लगा।
- सत्राहवीं और अठारहवीं सदी में जब भी मौका मिलता कोई-सी एक कंपनी किसी दूसरी कंपनी के जहाज डूबो देती, रास्ते में रुकावटें खड़ी कर देती और माल से लदे जहाज को आगे बढ़ने से रोक देती।
- फरमान - एक शाही आदेश
- पहली इंग्लिश फैक्ट्री 1651 में हुगली नदी के किनारे शुरू हुई। कंपनी के व्यापारी यहीं से अपना काम चलाते थे। इन व्यापारियों को उस जमाने में "फैक्टर" कहा जाता था।
- कठपुतली - यह एक खिलौना होता है जिसे आप धागों के सहारे चलता है उसे भी मजाक उड़ाने के लिए अकसर कठपुतली कहा जाता है।
- अठारहवीं सदी की शुरुआत में कंपनी और बंगाल के नवाबों का टकराव काफी बढ़ गया था। औरंगजेब की मृत्यु के बाद बंगाल के नवाब अपनी ताकत दिखाने लगे थे।
- मुर्शिद वुफली खान के बाद अली वर्दी खान और उसके बाद सिराजुद्दौला बंगाल के नवाब बने। ये सभी शक्तिशाली शासक थे।
- उन्होंने कंपनी को रियायतें देने से मना कर दिया। व्यापार का अधिकार देने के बदले कंपनी से नजराने माँगे, उसे सिक्के ढालने का अधिकार नहीं दिया, और
उसकी किलेबंदी को बढ़ाने से रोक दिया। - कंपनी पर धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए उन्होंने दलील दी कि उसकी वजह से बंगाल सरकार की राजस्व वसूली कम होती जा रही है और नवाबों की ताकत कमजोर पड़ रही है।
- कंपनी का कहना था कि स्थानीय अधिकारियों की बेतुकी माँगों से कंपनी
का व्यापार तबाह हो रहा है। व्यापार तभी फल-फूल सकता है जब सरकार
शुल्क हटा ले। - ये टकराव दिनोदिन गंभीर होते गए अन्ततः इन टकरावों की परिणति प्लासी के प्रसिद्ध युद्ध के रूप में हुई।
- 1756 में अली वर्दी खान की मृत्यु वेफ बाद सिराजुद्दौला बंगाल के नवाब बने। कंपनी को सिराजुद्दौला की ताकत से काफी भय था।
- सिराजुद्दौला की जगह कंपनी एक ऐसा कठपुतली नवाब चाहती थी जो उसे व्यापारिक रियायतें और अन्य सुविधाएँ आसानी से देने में आनाकानी न करे।
- कंपनी ने प्रयास किया कि सिराजुद्दौला के प्रतिद्वंद्वियों में से किसी को नवाब बना दिया जाए। कंपनी को कामयाबी नहीं मिली।
- 1757 में रॉबर्ट क्लाइव ने प्लासी के मैदान में सिराजुद्दौला के ख़िलाप़फ कंपनी की सेना का नेतृत्व किया।
- नवाब सिराजुद्दौला की हार का एक बड़ा कारण उसके सेनापतियों में से एक सेनापति मीर जाफ़र की कारगुजारियाँ भी थीं। मीर जाफ़र की टुकड़ियों ने इस युद्ध में हिस्सा नहीं लिया।
- प्लासी की जंग इसलिए महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि भारत में यह कंपनी की पहली बड़ी जीत थी।
- प्लासी की जंग के बाद सिराजुद्दौला को मार दिया गया और मीर जाफर नवाब बना।
- जब मीर जाफर ने कंपनी का विरोध किया तो कंपनी ने उसे हटाकर मीर कासिम को नवाब बना दिया।
- जब मीर कासिम परेशान करने लगा तो बक्सर की लड़ाई ;1764 में उसको भी हराना पड़ा। उसे बंगाल से बाहर कर दिया गया और मीर जाफर को दोबारा नवाब बनाया गया।
- 1765 में जब मीर जाफर की मृत्यु हुई तब तक कंपनी के इरादे बदल चुके थे। कठपुतली नवाबों के साथ अपने खराब अनुभवों को देखते हुए क्लाइव ने ऐलान किया कि अब "हमें खुद ही नवाब बनना पड़ेगा"।
- 1765 में मुग़्ल सम्राट ने वंफपनी को ही बंगाल प्रांत का दीवान नियुक्त कर दिया।
- 1743 में जब रोबर्वट कलाईव इंग्लैंड से मद्रास (अब चेन्नई) आया था तो उसकी उम्र 18 साल थी।
- 1767 में जब रोबर्वट कलाईव दो बार गवर्नर बनने के बाद हमेशा के लिए भारत से रवाना हुआ तो यहाँ उसकी दौलत 401,102 पौंड के बराबर थी।
- 1772 में रोबर्वट कलाईव ब्रिटिश संसद में उसे खुद भ्रष्टाचार के आरोपों पर अपनी सफाई देनी पड़ी। सरकार को उसकी अकूत संपत्ति के स्त्रोत संदेहास्पद लग रहे थे। उसे भ्रष्टाचार आरोपों से बरी तो कर दिया गया लेकिन 1774 में उसने आत्महत्या कर ली।
- बक्सर की लड़ाई (1764) के बाद कंपनी ने भारतीय रियासतों में रेजिडेंट तैनात कर दिये। ये कंपनी के राजनीतिक या व्यावसायिक प्रतिनिधि होते थे। उनका काम कंपनी के हितों की रक्षा करना और उन्हें आगे बढ़ाना था।
- "सहायक संधि" जो रियासत इस बंदोबस्त को मान लेती थी उसे अपनी स्वतंत्रा सेनाएँ रखने का अधिकार नहीं रहता था। उसे कंपनी की तरफ से सुरक्षा मिलती थी और सहायक सेना के रखरखाव के लिए वह कंपनी को पैसा देती थी।
- हैदर अली (शासन काल 1761 से 1782) और उनके विख्यात पुत्रा टीपू
सुल्तान (शासन काल 1782 से 1799) जैसे शक्तिशाली शासकों के नेतृत्व में
मैसूर काफी ताकतवर हो चुका था। - मालाबार तट पर होने वाला व्यापार मैसूर रियासत के नियंत्रण में था जहाँ से कंपनी काली मिर्च और इलायची ख़रीदती थी|
- 1785 में टीपू सुल्तान ने अपनी रियासत में पड़ने वाले बंदरगाहों से चंदन की लकड़ी, काली मिर्च और इलायची का निर्यात रोक दिया।
- टीपू सुल्तान ने भारत में रहने वाले फांसीसी व्यापारियों से घनिष्ठ संबंध विकसित
किए और उनकी मदद से अपनी सेना का आधुनिकीकरण किया। - मैसूर के साथ अंग्रेजो की चार बार जंग हुई (1767-69, 1780-84, 1790-92 और 1799)। श्रीरंगपट्म की आखिरी जंग में कंपनी को सपफलता मिली।
- अपनी राजधानी की रक्षा करते हुए टीपू सुल्तान मारे गए और मैसूर का राजकाज पुराने वोडियार राजवंश के हाथों में सौंप दिया गया। इसके साथ ही मैसूर पर भी सहायक संधि थोप दी गई।
- 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई में हार के बाद दिल्ली से देश का शासन चलाने का मराठों का सपना चूर-चूर हो गया।
- उन्हें कई राज्यों में बाँट दिया गया। इन राज्यों की बागडोर सिंधिया, होलकर, गायकवाड और भोंसले जैसे अलग-अलग राजवंशों के हाथों में थी।
- ये सारे सरदार एक पेशवा (सर्वोच्च मंत्री) के अंतर्गत एक कन्फडरेसी (राज्यमण्डल) के सदस्य थे। पेशवा इस राज्यमण्डल का सैनिक और प्रशासकीय प्रमुख होता था और पुणे में रहता था। महाद्जी सिंधिया और नाना फड़नीस अठारहवीं सदी के आखिर के दो प्रसिद्ध मराठा योधा और राजनीतिज्ञ थे।
- पहला युद्ध 1782 में सालबाई संधि के साथ खत्म हुआ जिसमें कोई पक्ष नहीं जीत पाया। दूसरा अंग्रेश-मराठा युद्ध (1803-05) कई मोर्चों पर लड़ा गया।
- 1838 से 1842 के बीच अपफगानिस्तान के साथ एक लंबी लड़ाई लड़ी और वहाँ अप्रत्यक्ष कंपनी शासन स्थापित कर लिया। 1843 में सिंध भी कब्ज़े में आ गया।
- 1839 में महाराजा रणजीत सिंह मृत्यु के बाद इस रियासत के साथ दो लंबी
लड़ाइयाँ हुईं और आखिरकार 1849 में अंग्रेजो ने पंजाब का भी अधिग्रहण कर लिया। - 1848 से 1856 के बीच गवर्नर-जनरल बने लॉर्ड डलहौजी ने एक नयी नीति अपनाई जिसे विलय नीति का नाम दिया गया। यह सिधांत इस तर्क पर आधारित था कि अगर किसी शासक की मृत्यु हो जाती है और उसका कोई पुरुष वारिस नहीं है तो
उसकी रियासत हड़प कर ली जाएगी यानी कंपनी के भूभाग का हिस्सा बन जाएगी। - इस सिधांत के आधार पर एक के बाद एक कई रियासतें - सतारा (1848), संबलपुर (1850), उदयपुर (1852), नागपुर (1853) और झाँसी (1854) - अंग्रेजो के हाथ में चली गईं।
- काजी - एक न्यायाधीश।
- मुफ़्ती - मुसलिम समुदाय का एक न्यायविद जो कानूनों की व्याख्या करता है। काजी इसी व्याख्या के आधार पर फसले सुनाता है।
- महाभियोग - जब इंग्लैंड के हाउस ऑफ कॉमंस में किसी व्यक्ति के ख़िलाफ दुराचरण का आरोप लगाया जाता है तो हाउस ऑफ लॉर्ड्स (संसद का ऊपरी
सदन) में उस व्यक्ति के ख़िलाफ मुकदमा चलता है। इसे महाभियोग कहा जाता है। - उस समय तीन प्रेजिडेंसी थी - बंगाल, मद्रास और बम्बई। हरेक का शासन गवर्नर के पास होता था। सबसे ऊपर गवर्नर-जनरल होता था।
- 1772 से एक नयी न्याय व्यवस्था स्थापित की गई। इस व्यवस्था में प्रावधान किया गया कि हर जिले में दो अदालतें होंगी - फौजदारी अदालत और दीवानी अदालत।
- दीवानी अदालतों के मुखिया यूरोपीय जिला कलेक्टर होते थे। मौलवी और हिंदू पंडित उनके लिए भारतीय कानूनों की व्याख्या करते थे।
- फौजदारी अदालतें अभी भी काज़ी और मुफती के ही अंतर्गत थीं लेकिन वे भी कलेक्टर की निगरानी में काम करते थे।
- 1775 में 11 पंडितों को भारतीय कानूनों का एक संकलन तैयार करने का काम सौंपा गया। एनबी. हालहेड ने इस संकलन का अंग्रेशी में अनुवाद किया।
- 1778 तक यूरोपीय न्यायाधीशों के लिए मुसलिम कानूनों की भी एक संहिता तैयार कर ली गई थी।
- 1773 के रेग्युलेटिंग ऐक्ट के तहत एक नए सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई।
- इसके अलावा कलकत्ता में अपीलीय अदालत - सदर निजामत अदालत - की भी स्थापना की गई।
- धर्मशास्त्रा - संस्क्रत की ऐसी कृतियाँ जिनमें सामाजिक तौर-तरीकों और आचरण के सिधान्तो की व्याख्या की जाती है। ये धर्मशास्त्रा ईसा पूर्व 500 वर्ष से भी पहले लिखे गए थे।
- सवार - घुड़सवार
- मसकेट - पैदल सिपाहियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक भारी बंदूक।
- मैचलॉक - शुरुआती दौर की बंदूक जिसमें बारूद को माचिस से चिंगारी दी जाती थी।
- 1857 तक भारतीय उपमहाद्वीप के 63 प्रतिशत भूभाग और 78 प्रतिशत आबादी पर कंपनी का सीधा शासन स्थापित हो चुका था। देश के शेष भूभाग और आबादी पर कंपनी का अप्रत्यक्ष प्रभाव था। इस प्रकार, व्यावहारिक स्तर पर ईस्ट इंडिया कंपनी पूरे भारत को अपने नियंत्रण में ले चुकी थी।