मुख्य बिंदु:
- ब्रह्मिका साड़ी प्रमुख रूप से बंगाल, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में लोकप्रिय थी|
- फ़्रांस में सम्प्चुअरी कानून 1294 ईo से 1789ईo तक प्रभावी रहा|
- 1913 ईo में डरबन (दक्षिण अफ्रीका) में महात्मा गाँधी ने पहली बार यह परिधान धारण किया|
- कृत्रिम रेशों से बने कपड़े पूर्व प्रचलित कपड़ो की तुलना में सस्ती, हल्के, आराम दायक होते थे| इन कपड़ो को पहनना और साफ़ करना आसन था इसीलिए इनकी मांग बढ़ गई थी|
- जैकोबिन क्लब्ज़ के लोग स्वयं को सेन्स क्लोट्टीज़ कहते थे|
- स्वदेशी आंदोलन ने भारत में बने माल का अधिक-से-अधिक देशवासियों द्वारा प्रयोग और विदेशी माल का बहिष्कार| पर विशेष बल दिया|
- इंग्लैंड की लडकियों को बचपन में घर व स्कूल में यह शिक्षा दी जाती थी कि पतली कमर रखना उनका नारी सुलभ कर्तव्य है| सहनशीलता स्त्रीत्व का आवश्यक गुण हैं| आकर्षक व स्त्रियोचित दिखने के लिए उनका कार्सेट पहनना आवश्यक था|
- सफ़ेद रंग की खादी के कपड़े महंगे थे, तथा उनका रख-रखाव भी कठिन था, जिसके कारण निम्न वर्ग के मेहनतकश लोग इसे पहनने से बचते थे| इसीलिए महत्मा गाँधी के विपरीत बाबा साहब अम्बेडकर जैसे अन्य राष्ट्रियवादियों ने पाश्चात्य शैली का सूट पहनना कभी नहीं छोड़ा |
- गाँधी जी की वेशभूषा सादगी, पवित्रता और निर्धनता का प्रतीक थी जो भारतीय जनता का विचारों और स्थिति को प्रतिबिम्ब करती थी| इस कारण महात्मा गाँधी जि की पोषक की प्रतीकात्मक शक्ति चर्चिल के साम्राज्यवाद का विरोध करती हुई प्रतीत हुई|