अध्याय-समीक्षा : कार्य और ऊर्जा
- कार्य एक ऊर्जा है |
- किसी पिंड पर किया गया कार्य, उस पर लगाए गए बल के परिमाण व बल
की दिशा में उसके द्वारा तय की गई दूरी के गुणनफल से परिभाषित होता है। कार्य का मात्रक जूल है अर्थात 1 जूल = 1 न्यूटन × 1 मीटर। - किसी पिंड का विस्थापन शून्य है तो बल द्वारा उस पिंड पर किया गया कार्य शून्य होगा।
- यदि किसी वस्तु में कार्य करने की क्षमता हो तो यह कहा जाता है कि उसमें ऊर्जा है। ऊर्जा का मात्रक वही है जो कार्य का है।
- किसी वस्तु पर बल लगाने के बाद भी यदि वस्तु विस्थापित नहीं होती है तो यह कार्य शून्य माना जाता है |
- हमें कार्य करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है |
- कार्य करने के लिए दो दशाओं का होना आवश्यक हैः (ii) वस्तु पर कोई बल लगना चाहिए, तथा (ii) वस्तु विस्थापित होनी चाहिए।
- किया गया कार्य = बल × विस्थापन या W = F s
- सभी सजीवों को भोजन की आवश्यकता होती है | जीवित रहने के लिए सजीवों को अनेक मुलभुत गतिविधियाँ करनी पड़ती हैं | इन गतिविधियों को हम जैव प्रक्रम कहते हैं |
- इन जैव प्रक्रमों को संपादित करने के लिए सजीवों को उर्जा की आवश्यकता होती है जो वे भोजन से प्राप्त करते हैं |
- मशीनों को भी कार्य करने के लिए उर्जा की आवश्यकता होती है जिसके के लिए डीजल एवं पेट्रोल का उपयोग किया जाता हैं
- कार्य एक अदिश राशि (Scalar Quantity) है |
- जब हम किसी वस्तु पर बल लगाकर उसे विस्थापित करते है तो वह क्रिया कार्य माना जायेगा |
-
गणितीय भाषा में कार्य को निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त किया जा सकता है | W = F . s . cos θ जहाँ F = बल, s = विस्थापन और θ बल सदिश एवं विस्थापन सदिश के बीच का कोण है |
-
इसको समझने के लिए तीन स्थितयाँ हैं |
(A) स्थिति A : जब बल सदिश एवं विस्थापन सदिश एक ही दिशा में हो तो उनके बीच का कोण θ = 0० होता है | इस स्थिति में कार्य धनात्मक होता है |
-
(B) स्थति B : जब बल सदिश एवं विस्थापन सदिश एक दुसरे के विपरीत हो तो उनके बीच का कोण θ = 180० होता है | इस स्थति में कार्य ऋणात्मक होता है |
-
(C) स्थिति C : जब बल सदिश लग रहा है एवं वस्तु में कोई विस्थापन न हो तो F तथा s के बीच का कोण 90 डिग्री का होता है | इस स्थिति में कार्य शून्य होता है |
-
जूल कार्य : जब किसी वस्तु को 1 N बल लगाकर उसे बल की दिशा में 1 मीटर विस्थापित किया जाए तो कहा जायेगा कि 1 जूल कार्य हुआ है |
- यदि किसी वस्तु में ऊर्जा है तो वह दूसरी वस्तु पर बल लगाकर कार्य कर सकता है |
- जब कोई वस्तु दुसरे वस्तु पर बल लगाता है तो ऊर्जा पहली वस्तु से दूसरी वस्तु में स्थानांतरित हो जाती है |
- किसी वस्तु में निहित ऊर्जा को उसकी कार्य करने की क्षमता के रूप में मापा जाता है |
- इसलिए ऊर्जा का मात्रक जूल है जो कार्य का मात्रक है |
- ऊर्जा के बड़े मात्रक के रूप में किलोजूल (kJ) का उपयोग किया जाता है |
-
(i) स्थितिज ऊर्जा : किसी वस्तु में संचित उर्जा को स्थितिज उर्जा कहते हैं |
-
(ii) गतिज ऊर्जा : गतिमान वस्तु में कार्य करने कि क्षमता होती है, वस्तु के गति के कारण उत्पन्न उर्जा को गतिज उर्जा कहते हैं |
-
(iii) उष्मीय ऊर्जा : ऊष्मा उर्जा का एक अन्य रूप है जिसमें एक रूप से दूसरी रूप में परिवर्तन होने कि क्षमता होती है | यह वस्तु के कणों के बीच में गतिज उर्जा के रूप में परिवर्तित हो जाती है |
-
(iv) रासायनिक ऊर्जा : कुछ रसायनों में उर्जा उत्पन्न करने की क्षमता होती है, रासायनिक प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न उर्जा को रासायनिक उर्जा कहते हैं |
-
(v) विद्युत ऊर्जा : विद्युत में कार्य करने की अदभुत क्षमता होती है | इस विद्युत से उत्पन्न उर्जा को विद्युत उर्जा कहते है |
-
(vi) प्रकाश ऊर्जा : उर्जा के किसी स्रोत से जब उर्जा का उपभोग प्रकाश प्राप्त करने के लिए जब किया जाता है तो उसे प्रकाश उर्जा कहते है |
-
ऊर्जा संरक्षण का नियम : उर्जा संरक्षण के नियम के अनुसार उर्जा का न तो सृजन किया जा सकता है और न ही विनाश किया जा सकता है , इसका केवल एक रूप से दुसरे रूप में रूपांतरित हो सकता है |
-
यांत्रिक उर्जा (Mechanical Energy) : किसी वस्तु के स्थितिज उर्जा एवं गतिज उर्जा के योग को यांत्रिक उर्जा कहते हैं |
-
शक्ति (Power) : कार्य करने कि दर या उर्जा रूपांतरण की दर को शक्ति कहते हैं | शक्ति = कार्य/समय इसे P से सूचित करते है |
-
व्यावसायिक ऊर्जा का मात्रक किलोवाट घंटा (kW h) हैं जिसे यूनिट (unit) में व्यक्त करते हैं |
-
1 kW h = 3600000 J = 3.6 x 106 J होता है |