अध्याय 13. हम बीमार क्यों होते हैं ?
अध्याय-समीक्षा :
- स्वास्थ्य वह अवस्था है जिसके अंतर्गत शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक कार्य समुचित क्षमता द्वारा उचित प्रकार से किया जा सके।
- सभी जीवों का स्वास्थ्य उसके पास-पड़ोस अथवा उसके आस-पास के पर्यावरण पर
आधरित होता है। - हमारे भौतिक पर्यावरण का निर्धारण सामाजिक पर्यावरण द्वारा होता है |
- भौतिक पर्यावरण का अर्थ है वहाँ का मौसम, तापमान, प्रदुषण, सफाई, गन्दगी आदि से |
- सामुदायिक स्वच्छता व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है |
- अच्छी आर्थिक परिस्थितियाँ तथा कार्य भी व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं।
- स्वस्थ रहने के लिए हमें प्रसन्न रहना आवश्यक है। यदि किसी से हमारा व्यवहार ठीक नहीं है और एक-दूसरे से डर हो तो हम प्रसन्न तथा स्वस्थ नहीं रह सकते। इसलिए व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए सामाजिक समानता बहुत आवश्यक है।
- अपनी विशिष्ट क्षमता को प्राप्त करने का अवसर भी वास्तविक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
- रोगमुक्ति के लिए आवश्यक है व्यक्ति का व्यक्तिगत साफ-सफाई और स्वाथ्य वातावरण एवं स्वास्थ्य भोजन |
- जब कोई रोग होता है तब शरीर के एक अथवा अनेक अंगों एवं तंत्रों में क्रिया अथवा संरचना में ‘खराबी’ परिलक्षित होने लगती है।
- सिरदर्द, खाँसी आना, जुकाम होना, बुखार होना, पेटदर्द, दस्त आना और उल्टी होना आदि रोग नहीं अपितु रोग के लक्षण हैं |
- लक्षण किसी विशेष रोग के बारे में सुनिश्चित संकेत देते है | जिसकों देखकर रोग कि पहचान की जाती है | इसके लिए प्रयोगशाला में परिक्षण भी होता हैं |
- जिन रोगों की अवधि कम होती है उन्हें तीव्र रोग कहते हैं | जैसे - खाँसी-जुकाम, दस्त आदि |
- ऐसे रोग हैं जो लंबी अवधि तक अथवा जीवनपर्यंत रहते हैं, ऐसे रोगों को दीर्घकालिक रोग कहते हैं। उदाहरण : एलिफेनटाईटिस अथवा फीलपांव आदि |
- सामान्य स्वास्थ्य के लिए शरीर के सभी अंगों का समुचित कार्य करना आवश्यक है।
- तीव्र रोग, जो बहुत कम समय तक रहता है, उसे सामान्य स्वास्थ्य को प्रभावित करने का समय ही नहीं मिलता।
- दीर्धकालिक रोग बहुत लंबे समय तक शरीर में बने रहने के कारण यह हमारे समान्य स्वास्थ्य को प्रभावित करता है | जैसे- वजन का कम होना, थकान महसूस करना, अन्य दुसरे उपद्रव उत्पन्न हो जाना आदि |
- सभी रोगों के तात्कालिक कारण तथा सहायक कारण होते हैं। साथ ही विभिन्न प्रकार के रोग होने के एक नहीं बल्कि बहुत से कारण होते हैं।
- वह रोग जिनके तात्कालिक कारक सूक्ष्म जीव होते हैं उन्हें संक्रामक रोग कहते हैं। उदाहरण- टिटनेस, हैजा, प्लेग, टाइफाइड आदि |
- कुछ रोग जो सूक्ष्म जीवों के कारण नहीं होते हैं उनका कारण अन्य कारक होते है असंक्रामक रोग कहलाता है | उदाहरण - कैसर, मोटापा, उच्च रक्त चाप आदि |
- हेलिकोबैक्टर पायलोरी नामक जीवाणु पेप्टिक व्रण (peptic ulcer) का कारण है |
- संक्रामक रोगों का कारक जीव वायरस, कुछ बैक्टीरिया, फंजाई एक कोशिकीय जन्तु एवं कुछ प्रोटोजोआ होते हैं, कुछ बहु कोशिकीय जीव जैसे कृमि, प्लेनेरिया आदि भी होते है |
- वायरस से होने वाला रोग - खाँसी-जुकाम, एन्फ़्लुएन्ज़ा, डेंगू बुखार तथा एड्स (AIDS) आदि |
- जीवाणु (बैक्टीरिया) से होने वाला रोग - टाइफाइड, हैजा, ट्यूबरक्लोसिस (क्षयरोग) तथा एंथ्रेक्स आदि |
- सामान्य सभी त्वचा रोग फंगस के संक्रमण से होते हैं |